SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५३) आपणी फरज अथवा भक्ति छे. जे ज्ञानरूपी भंडार तेओ आपणा माटे मुकी गया छे, तेमां वधारो करवानी तो आपणामां किंचित् पण शक्ति नथी तो ते महान् पूर्वजोनी संतति तरीके आपणे एटलं पण अभिमान न राखq, के ते ज्ञान कायम राखी तेनो फेलावो आपणा जातभाईओमां करवो? जो तेम न करीए तो आपणा पूर्वजोने आपणे बीलकुल लायक नथी एम आपणने नहि लागशे अथवा कोई आपणने नहि कहेशे ? धर्मना विषय सिवाय जमानानी कळाना विषयो तरफ नजर करीए छीए, तो जणाई आवे छे के छापवानी कळा, वराळयंत्र, वीजळिक तार, के जेनाथी हालनो व्यवहार सेहेलाईर्थी चलावाय छे ते कळाओनी हयातीनी साथे तेना शोधकोनां नाम अमर थई गयलां अने मेदाननी सपाटी उपर उज्वळ शिखररूप देखाय छे. प्राचीन वखतथीज महान् पुरुषो अने तेमनां कर्तव्योने देवअंश आपवानी पद्धति पडेली जणाय छे. बीजी रीते कहीए तो जे महान् पुरुषो भविष्यनी प्रजाना हितने माटे पोतानो भोग आपी, दुनियानां सुखोनो त्याग करी जे ज्ञान आपणे माटे मुकी गया छे, तेमनी कीर्ति माणस जातना इतिहासमा चळकता ताराना आकारमा रहे तेमां कांई आश्चर्य नथी. वळी तेओनां घणां कर्तव्योनां फळ आपणने एवां सामान्य थई पड्यां छे के ते आपणे भोगवता छतां तेना पुरावा, इतिहासमां मळी आवता नथी; अने तेनुं कारण ए छे के ते वखतनो इतिहास आपणने लेखरूपे मळतो नथी, अथवा सामान्य होवाने लीधे ते बनावोनी इतिहासमां नोंध लेवाई नथी. आ सिद्धांत साबीत करवा माटे एक माणसनो दाखलो लईए कारण एक माणस पण प्रजानो एक अंश छे. जेओ विचार करता नथी तेओ साधारण रीते एम मानेछे, के बचपणनां पहेलां वर्षोमां बाळक कांई समी शकतुं नथी. तेओ एमज समजेछे के बचपणमां माणस खावु अने वधq ते सिवाय काई करतो नथी. आ कल्पना मोटी भूल भरेली छे. बारीक विचार करतां साफ जणाई आवे छे के बच्चु पोताना सहवासमा आवता पदार्थोनु कद, माप, अंतर, अने तेनु अवलोकन करवामां इंद्रिओनो उपयोग करवामां जे शक्तिओ वापरेछे तेथी तेना मननी चपळता ते वखतथीज प्रफुल्लित थवा पामेछ. आ रीते मेळवेल ज्ञान- महत्व आपणे समजता नथी तोपण ते आखी जींदगीमां मोटा खजानानी गरज सारेछे. आ शक्ति मेळववामां प्रथमना बे वर्षमा जे ज्ञान उत्पन्न थायछे ते आखी जींदगीना पछीना प्रयासथी मळी शकतुं नथी. आ क्रियाओ एवी सरळताथी काम करेछे के आपणे तेनी नोंध लेवानी अगत्य समजता नथी. दाखला तरीके देवतानो दाखलो लईए तो आपणे आ काळमां तेना उपयोगथी एटला बधा जाणीता थई गया छीए, के श्री ऋषभदेवस्वामीना वखतमां जुगलीआंने काचं अनाज न पची शकवाथी तेओने अग्नि उत्पन्न करवानी अने तेने वापरवानी युक्ति प्रथम शीखवी अने तेथी तेओ अनाज रांधीने वधारे स्वादिष्ट करीने खावा शीख्या. ते वखतनो तेमनो आनंद आपणी कल्पनामां पण अत्यारे घणा महत्वनो जणाई आवतो नथी, परंतु तेओने केटलं आश्चर्य अने नवाई लागी हशे अने तेथी केटलो आनंद थई गयो हशे, तेनो काईक ख्याल विचारशक्तिथी लावीए तो आपणने सामान्य दाखला पण घणा बोधकारक नीवडी शके. बीजो दाखलो धातुओनो लईए तो प्रथम तेनो घणोज सादो उपयोग थतो अने हाल ते केटला विस्तारमा अने विविध आकारमा आपणे वापरवा शीख्या छीए. भाषानो दाखलो लईए तो पण जणाय छे के प्रथम भाषा केटली सादी १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy