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________________ ( ५२ ) एकज पुरुष एटले आपणा मानवंता जैन रत्न गुलाबचंदजी ढढाए करी छे अने पोतानी धारणा पार पाडवाने घणां विघ्नो नडशे एम जाण्या छतां तेमणे खरा अंतःकरणथी जैन कोम तरफनी पोतानी दिलसोजी पूर्णताए पहोंचाडवा शारीरिक, मानसिक अने द्रव्य संबंधी भोग आपी आ कॉन्फरन्सनुं बीज रोप्युं छे; अने ते झाडनुं पोषण करवाने जैन कोम केटली उत्सुक छे ते जोई आनंद पामवाने तेओ पोते अत्यारे आपणा मंडळमां बिराजे छे. हालना जमानामां वधारे नजर करीए छीए तो विद्वान् पुरुषो आखी जींदगी मच्या रही जे नवी शोधो करे तेनुं फळ पोते भोगवता नथी. तेओ ज्ञानना दरवाजा प्रजाने माटे खुल्ला करवामां पोताना दैहनो भोग आपे छे अने बीजाओ माटे रस्ता खुल्ला करी आवे छे. त्यारे शुं आ उपरथी एम सिद्ध थाय छे के जेओ केवळ परमार्थने माटे पोतानुं सर्वस्व अर्पण करे छे तेओने कांईज फळ मळतुं नथी ? जो एम गणीए तो आ जन्म पछी बीजो जन्म नथी अथवा इंद्रिय सुख सिवाय बीजुं सुख नथी एम कहेवाय. परंतु ज्ञानीओए बन्ने बाबतो जूठी पाडी छे, अने आ जन्ममां करेलां कर्मनुं सारुं अथवा नरतुं फळ अहीं तेमज आवती जींदगीमां भोगवाय एम सिद्ध करी आप्युं छे. त्यारे एम कहेवुं पडशे के जे महान् पुरुषो आखी कोमने माटे पोतानो भोग आपे छे जेओ पोतानो आवतो जन्म सुधारे छे एटलुंज नहि पण, आ जन्ममां पण पोताना आत्माने संतोष आपवानुं मोटुं सुख जे पैसा वडे पण मळी शकतुं नथी ते मेळवी शके छे. वळी बीजी रीते जेओ पोतानी जींदगीमां परमार्थ करी जाय छे तेमनीज संतति तेनुं सुख बे रीते भोगवे छे. एटले एक तो तेओ पोताना पूर्वजो ने पगले चालतां शीखे छे, अने बीजुं तेओ पोते वडीलोनी कीर्तिनुं फळ भोगवे छे. आ रीते धीमे धीमे एक माणसे करेलुं कृत्य आखी कोमने आशिर्वादरूप थई पडे छे. आ उपरथी सिद्ध थाय छे के कोमना दरेक माणसे पोतानी शक्ति मुजब कोमनी उन्नति माटे प्रयास करवानी फरज छे. जेमके शरीरना जूदा जूदा अवयवो जू दुं जू दुं काम करी शरीरनुं पोषण मेळवे है परंतु अंते लोही रूप दरेक अवयव ते पोपण पाहुं मेळवे छे, तेम कोमनी अंदर पण थोडाओर करेला कृत्यो आखी कोमने उपयोगी थई पडे छे एटले तेमां स्वार्थ अने परमार्थ बन्ने सिद्ध थाय छे. आ सिद्धांत पुर्व थई गएला महान् पुरुषोनां चरित्रोथी सिद्ध थाय छे. दुनियामां जेम बखतो वखत एक प्रजा बीजा करतां आगळ पडती थाय छे. तेम एक कोमनी अंदर पण केटलाक माणसो आगळ पडता जणाय छे. ऐतिहासिक महान् पुरुषो विषे पण तेमज होय छे. तेओनां कर्तव्यनी छाप आखी प्रजा उपर पडे छे. माणस जातना इतिहासमा ज्यारे ज्यारे मोटा फेरफार थवाना होय छे त्यारे ते करवा माटे महान् पुरुषो उत्पन्न थाय छे. संसारिक अने धार्मिक सुधाराना मुख्य उत्पादक महान् पुरुषो एकलाज होय छे. विद्या, कळा, साहित्य विगेरेना इतिहास साथे तेओनां नाम जोडाएलां होय छे. हालना जमानानी विद्या विषयनी शोधमां पण तेज अनुक्रम प्रसरतो जोवामां आवे छे. आपणा पूर्वाचार्योए आपणा धर्मनी उन्नति माटे असंख्य पुस्तको अने क्रियाना नियमो अथाग मेहेनत अने केवळ निःस्वार्थ बुद्धिधी रच्या न होत, तो आजे आपणी धर्म संबंधी स्थिति केवी होत अने केटला अज्ञानमां डुबेला पडया होत ! जे किंचित् ज्ञान आपणे हाल धरावीए छीए, ते पूर्व काळना विद्वानोनी परमार्थ वृत्तिनी निशानी छे माटे तेओ तरफ माननी नजरे जोवुं अने ते मुजब वर्तवा प्रयत्न करबो, ए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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