SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) झाड़ियों को काटकर आगे बढ़ने के लिये सड़क तैयार कर ली । यह देख राना भाग गया और उसके साथवाले महाराज की शरण में चले आए । इस पर महाराज ने भी उनका अपराध क्षमा कर दिया। इसके बाद मँगसिर सुदि ४ ( ३ दिसम्बर ) को महाराज जोधपुर चले आए। परंतु महाराज प्रतापसिंहजी ने लोयाने को उजाड़ कर उसके पास जसवन्तपुरा नाम का दूसरा गांव बसा दिया और भीनमाल से हकूमत को उठाकर वहां पर स्थापित कर दिया । इस प्रकार वि० सं० १९४० की फागुन वदि १३ । ई० स० १८८४ की २४ फ़रवरी ) तक यह सारा प्रबन्ध कर वह (महाराज प्रतापसिंहजी) जोधपुर चले आए। इसी वर्ष नगर में आवारा फिरनेवाले कुत्तों को पकड़ने और उनको एक बाड़े में रख कर राज्य की तरफ़ से खाना देने का प्रबन्ध किया गया । इसी वर्ष जोधपुर और बीकानेर के बीच अपराधियों के लेन-देन के बाबत संधि की गई। यह संधि निजी तौर पर की गई थी । इसलिये विना किसी 'प्रीमाफ़ेसी' केस के ही अपराधियों का आदान-प्रदान होने लगा । परन्तु वि० सं० १९७९ (ई० स० १९२२) में इसमें सुधार किया जाकर 'प्रीमाफ़ेसी केस' का होना लाज़मी करार दिया गया। वि० सं० १९५७ (ई० स० १९००) में जयपुर के साथ भी ऐसी संधि हो गई और बाद में वि० सं० १९८४ (ई० स० १९२७ ) में इसमें भी सुधार किया गया। ___ महाराजा मानसिंहजी के समय से उदयपुर और जोधपुर के राज-घरानों के बीच मनोमालिन्य चला आता था । परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी ने इसे दूर कर दिया। इसी से इनके निमंत्रण पर, वि० सं० १९३६ की फागुन सुदि १० (ई० स० १८०० की २१ मार्च ) को, महाराना सज्जनसिंहजी इन से मिलने के १. वि० सं० १६४१ (ई० स० १८८४ ) में उसकी मृत्यु हो गई । २. कुछ काल बाद राना सालसिंह के लड़के को सिणला, आदि तीन गांव जागीर में दिए गए। ३. हर गरमियों में अक्सर बहुत से आवारा कुत्ते बावले हो कर ६०-६५ आदमियों को काटलिया करते थे और इससे १५-२० आदमियों की मृत्यु हो जाती थी। परंतु कुत्तों के पकड़ने का प्रबन्ध हो जाने से यह आफत दूर हो गई । यद्यपि शहर के लोगों ने पहले इस कार्य पर आपत्ति कर दो-तीन दिनों तक बाज़ार की दूकानें बंद रक्खीं, तथापि इसका मर्म समझाने पर अन्त में वे शांत हो गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy