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________________ मारवाड़ का इतिहास दूर करवालिया । उनके वापिस लौट जाने पर महाराज आगे बढ़ रूपनगर ( किशनगढ़राज्य में ) पहुँचे । इसी प्रकार जयपुर-महाराजा जगतसिंहजी भी जयपुर से रवाना होकर अपने राज्य की सरहद के मरवा नामक गाँव में चले आए । यहीं पर पूर्वनिश्चयानुसार दोनों नरेशों का विवाह हुओं और दोनों राज्यों के बीच फिर से मित्रता कायम हो गई । इसके बाद उन जागीरदारों ने भी, जो धौंकलसिंह का पक्ष लेने के कारण अब तक जयपुर में थे, महाराज के सामने हाज़िर हो माफ़ी मांगली । इसलिये इन्होंने हरसोलाव-ठाकुर जालिमसिंह को छोड़ और सब की आजीविका का यथोचित प्रबन्ध कर दिया । इन कामों से निपट महारान फिर नागोर होते हुए जोधपुर लौट आए । वि० सं० १८७० (ई० स० १८१३ ) में सिरोही के राव उदयभाणजी तीर्थयात्रा से लौटते हुए पाली में ठहरे । इसकी सूचना मिलते ही महाराज ने दो सौ सिपाही भेज उन्हें पकड़वा मंगवाया । परन्तु करीब तीन मास नज़रबंद रहने पर जब उन्होंने, लाचार हो, जोधपुर की अधीनता और सवा लाख रुपये दण्ड के देना स्वीकार करलिया, तब उन्हें सिरोही जाने की आज्ञा देदी गई । इसी वर्ष सिंध के टालपुरा मुसलमानों ने उमरकोट में उपद्रव उठाकर वहाँ पर अधिकार कर लिया । वि० सं० १८७१ (ई० स० १८१४ ) में अमीरखा के नायब (मोहम्मदशाह) ने सिपाहियों की तनख्वाह वसूल करने के लिये मारवाड़ के गाँवों को लूटना शुरू किया। यह देख सिंघी इन्द्रराज ने, जो मंत्री का काम करता था, तीन लाख रुपये दिलवाने का प्रबन्ध कर उसे विदा किया। १. जयपुर-महाराज को यह भय था कि कहीं जयपुर से बाहर जाने पर अमीरखा उन्हें पकड़ न ले। यह देख जयपुर वालों की प्रार्थना पर महाराजा मानसिंहजी ने उन दोनों के बीच मैत्री करवा दी । इसकी पुष्टि बीकानेर-नरेश सूरतसिंहजी के महाराज के नाम लिखे, वि० सं० १८७० की माघ वदि १० ( ई० स० १८१४ की १६ जनवरी) के, पत्र से भी होती है। २. महाराजा मानसिंहजी का विवाह जयपुर-राज्य के मरवा गाँव में और महाराजा जगतसिंहजी का विवाह महाराज के भ्राता किशनगढ़-नरेश के राज्य के रूपनगर में हुआ। इनमें महाराज की तरफ से किशनगढ़-नरेश कल्याणसिंहजी और अजमेर-प्रान्त के सरदार मी शरीक हुए थे। ३. यह मायलाबाग नामक स्थान में रखे गए थे। ४. सिरोही का इतिहास, पृ० २७६-२८० । ४१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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