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________________ महाराजा मानसिंहजी अगले वर्ष के भादों (ई० स०-१८१५ के सितम्बर) में स्वयं अमीरख़ाँ पन्द्रह हजार सैनिक लेकर मारवाड़ में आया । मौका देख मुहता अखैचंदे और आउवा, आसोप आदि के सरदारों ने उसे भड़कायों कि सिंघी इन्द्रराज और आयस देवनाथ ही उसके ख़र्च के रुपयों को रोका करते हैं, इसलिये यदि वह उन्हें मरवाडाले तो उसका आज तक का चढ़ा-चढ़ा रुपया वे देसकैते हैं । परन्तु उनके इस गुप्त - षड्यंत्र की सूचना मिलजाने से इन्द्रराज ने किले से बाहर आना छोड़ दिया । यह देख वि० सं० १८७२ की आश्विन सुदि ८ ( ई० स० १८१५ की १० अक्टोबर ) को अमीरख़ाँ की आज्ञा से उसके कुछ सैनिकों ने किले पर पहुँच खर्च के विषय में बखेड़ा उठाया और मौका पाकर ख़्वाबगाह के महल में बैठे प्रायस देवनायें और सिंघी इन्द्रराज को मारडाला । उसी समय वहाँ पर उपस्थित तीन चार आदमी और भी मारे गए । महाराज उस समय पास ही के मोतीमहल में थे । इसलिये हल्ला सुनते ही उधर को जाने लगे । परन्तु पास वालों ने इन्हें वहीं रोक कर बाहर का सारा हाल कह सुनाया । इस पर महाराज ने क्रुद्ध होकर हत्या -कारियों को प्राण- दण्ड देने की आज्ञा दी । यह देख षड्यंत्र में सम्मिलित सरदारों ने अमीरख़ाँ द्वारा शहर के लूट लिए जाने का भय दिखला कर इस आज्ञा को रुकवाना चाहा । परन्तु जब वे किसी तरह महाराज को अनुकूल न कर सके, तब उन्होंने आयस देवनाथ के छोटे भ्राता भीमनाथ को, अमीरख़ाँ द्वारा उसके मारडाले जाने और महामन्दिर के लूट लिए जाने १. यह उन दिनों सिंघी इन्द्रराज से दुश्मनी होने के कारण नाथजी के निज मन्दिर में शरण लेकर रहता था । २. किसी किसी ख्यात से ज्ञात होता है कि अमीरख़ाँ अपने लिये नियत किए गाँवों की आमदनी से सन्तुष्ट न होकर मेड़ते और नागोर पर भी अधिकार करना चाहता था । परन्तु शुरू में महाराज के लिहाज़ से चुप रहकर भी अन्त में सिंघी इन्द्रराज ने इस बात को मंजूर न किया । इसी से अमीरखाँ मनमें उससे नाराज़ था। ऊपर से खींवसी आदि ने उसे और भी भड़का दिया । ३. साथ ही उन्होंने यह वादा किया कि उन दोनों की हत्या करने वालों को भी वे सज़ा न होने देंगे। ४. महाराज ने इसकी जोधपुर का राज्य प्राप्त होने की भविष्यवाणी के सच हो जाने के कारण, राज्य का सारा कारबार इसे ही सौंप दिया था । ५. महाराज ने उसकी सेवा का ख़याल कर साधारण नियम के विरुद्ध उसकी लाश को सीधे मार्ग से किले से बाहर ले जाने की आज्ञा दी | ४१७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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