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________________ महाराजा सरदारसिंहजी वि० सं० १६५७ के लगते ही, गरमी की अधिकता के कारण देश में हैजे का प्रकोप हो गया और दरवार की तरफ़ से हर-तरह का प्रयत्न किए जाने पर भी बहुत से लोग काल-कवलित हो गएं । इसके बाद बरसात में, वर्षा की अधिकता के कारण, घास और नाज तो बहुत हुआ, परंतु देश में चारों तरफ़ ज्वर का जोर बढ़ गया। इन्हीं दिनों 'बासर' का युद्ध छिड़जाने से, वि० सं० १९५७ के भादों (ई० स० १६०० के अगस्त ) में स्वयं महाराज प्रतापसिंहजी, जोधपुर के सरदार-रिसाले को साथ लेकर, चीन की तरफ गएँ । वहां पर इस रिसाले ने कई अच्छे वीरता के कार्य किए। इससे प्रसन्न होकर गवर्नमेंट ने, युद्ध-समाप्त होने पर, इसे अपने झंडे पर "चाइना१६००" साथ कुचामन के 'इकतीसंदे' रुपये का चलन भी बंद हो गया। इसके पहले जोधपुर, पाली, सोजत, नागोर और मेड़ते में राज्य की टकसालें थीं। परन्तु मेड़ते की टकसाल में पहले से ही सिक्का बनाना बंद करदिया गया था । इस वर्ष से जोधपुर में ही अधिकतर सोने और ताँबे के सिक्के बनाने का प्रबन्ध रह गया। इसी के साथ कुचामन की टकसाल भी बंद करदी गई। ऐचिसन् ने अपनी 'ए कलैक्शन ऑफ़ ट्रीटोज़, एंगेजमेंट्स ऐण्ड सनद्स (भा० ३ पृ०१४६) में वि० सं० १६५७ की चैत्र वदि ७ (३० स० १६०८ की २३ मार्च ) से जोधपुर में कलदार रुपये का जारी होना लिखा है । इसी वर्ष ( ई० स० १६००) में महाराज ने 'जोधपुर-बीकानेर-रेल्वे' द्वारा अधिकृत या आगे अधिकृत होने वाली भूमि का अधिकार गवर्नमेंट को सौंप दिया । परन्तु फिर भी गवर्नमेंट की सम्मति से, कुछ शर्तों पर, उस भूमि पर महाराज का ही अधिकार रहा। १. वि० सं० १६५७ की वैशाख सुदि ११ (ई० स० १६०० की १० मई ) को, ताज़ियों के मेले के समय, मुसलमानों ने अचानक आक्रमण कर पीपलिया-महादेव के मंदिर को तोड़ डाला और वहां के पीपल को भी काट डाला । सम्भव था कि वे और भी उपद्रव करते, परन्तु दरबार की प्राज्ञा से कप्तान गणेशप्रसाद ने तत्काल घटनास्थल पर पहुँच स्थिति को हाथ में लेलिया । २. जिस समय आप चीन में थे, उस समय (फागुन सुदि २ ई० स० १६०१ की २० फरवरी को) ईडर-नरेश केसरीसिंहजी का स्वर्गवास होगया । उनके पीछे पुत्र न होने से जैसे ही इस बात की सूचना महाराज प्रतापसिंहजी को मिली, वैसे ही उन्होंने, तारद्वारा, उस समय के वायसराय लॉर्ड कर्जन को उक्त राज्य के विषय में अपने हक पर विचार करने के लिये लिखा। ३. यह रिसाला उस समय मथुरा में था और वहीं से सीधा चीन की तरफ गया। ४. वि० सं० १६५८ की द्वितीय श्रावण वदि २ (ई० स० १६०१ की २ अगस्त) को महाराज प्रतापसिंहजी, इस युद्ध से लौट कर, जोधपुर आए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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