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________________ मारवाड़ का इतिहास और गवर्नमैंट और जोधपुर-राज्य के बीच एक संधि हुई । इसके अनुसार राजकीय रिसाले के युद्ध के लिये मारवाड़ से बाहर जाने पर उसके संचालन का भार अंगरेजीसेना के अफसरों को सौंपना निश्चित हुआ । ___इस वर्ष मारवाड़ भर में वर्षा न होने से घोर अकाल पड़ा । इसलिये गांवों के लोग अपने-अपने पशुओं को लेकर मालवे की तरफ़ चले । परंतु उस साल उस तरफ़ भी दुर्भिक्ष होने से उन्हें वापस लौटना पड़ा । इस आवागमन में उनके करीबकरीब सारे ही पशु मर गए और अन्नाभाव से स्वयं उन की दशा भी शोचनीय हो गई । इस अवसर पर राज्य की तरफ़ से स्थान-स्थान पर सरकारी आदमी नियत कर उन लोगों को सुविधा के साथ मारवाड़ में लौटा लाने का प्रबन्ध किया गया। साथ ही पानी के लिये बांध बंधवाने आदि का कार्य शुरू कर, जो लोग मजदूरी कर सकते थे, उनको उस काम पर लगाया । परंतु जो कमजोर, वृद्ध या बालक थे उनके लिये नाडेलावे में भोजन का प्रबन्ध किया गया। इसके अलावा बाहर से नाज और घास मँगवा कर मारवाड़ भर में जगह-जगह दूकानें खुलवा दी गईं और नगर-वासियों के सुभीते के लिये कुँओं और बावलियों से पानी खिंचवा कर पास के हौजों में भरवाने का प्रबंध किया गया । इस प्रकार, प्रजा को अकाल के प्रकोप से बचाने के लिये दरबार की तरफ़ से २६,३३,३५४ रुपये खर्च किए गएँ । इस वर्ष मारवाड़ में नाज और घास की उपज बिलकुल न होने से लाखों रुपयों का नाज और घास बाहर से मँगवाना पड़ा था। इसीसे यहां के चांदी के सिक्के की दर बहुत गिर गई और करीब १२४ (जोधपुर के) बिजैशाही रुपये देने पर केवल १०० कलदार रुपये का माल बाहर से आने लगा। इसलिये राज्य को अपना निजका सिक्का ढालना बंद कर मारवाड़ में कलदार रुपये का प्रचलन करना पड़ा। १. ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमैंट्स ऐण्ड सनद्स, भा० ३, पृ० १८०-१८१ । २. इन मृत-पशुओं की संख्या १४ लाख (अर्थात्-मारवाड़ के कुल मवेशियों की आधी तादाद) तक पहुंची थी। ३. यह स्थान जोधपुर से २ कोस वायव्य-कोण में है। ४. जोधपुर-दरबार ने अकाल और उसके बाद के असर को दूर करने के लिये गवर्नमेंट से ___३६ लाख रुपये कर्ज़ लिए थे। ५. वि० सं० १६५७ की वैशाख सुदि २ (ई० स० १६०० की १ मई ) से मारवाड़ में कलदार रुपये का प्रचलन हुआ और छ महीने तक राज्य की तरफ़ से, १० रुपये सैंकड़ा बट्टा लेकर, बिजैशाही के बदले कलदार रुपया देने का प्रबन्ध किया गया । इसी के ५०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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