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________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) निश्चय किया गया । इस वर्ष की माघ वदि १ (ई० स० १८८९ की १८ जनवरी ) को बम्बई के गवर्नर टी. ई. रे और फागुन सुदि १३ (१५ मार्च ) को जनरल सर बॅडरिक रॉबर्ट्स जोधपुर आए । यहां पर एक रोज जिस समय जनरल रॉबर्ट्स शिकार के लिये सूअर का पीछा कर रहे थे, उस समय उसने उनके घोड़े को ज़ख़्मी करदिया । इससे घोड़ा और सवार दोनों पृथ्वी पर गिर पड़े । ऐसी हालत में सूअर पलट कर जनरल रॉबर्ट्स पर हमला करने ही वाला था, परन्तु महाराज प्रतापसिंहजी ने तत्काल अपने घोड़े से कूद कर सूअर की पिछली टांगें पकड़ली और उसे पेशकब्ज से मारडाला। इसी वर्ष एक रेल्वे लाइन जोधपुर से मेड़तारोड होती हुई कुचामन-रोड तक, १. वि० सं० १६४६ के भादों (ई. स. १८८६ के अगस्त) में महाराज ने गवर्नमेंट को इस विषय में एक पत्र लिखा। उसमें जोधपुर-दरबार की तरफ से आवश्यकता के समय गवर्नमेंट को एक हज़ार सवारों से सहायता देने के विचार का उल्लेख था । वि० सं० १६५४ (ई० स० १८६७ ) में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त-प्रदेश में काम करने के लिये जोधपुर के रिसाले में चार स्क्वॉडून और भरती किए गए। कार्तिक ( अक्टोबर ) में महाराज प्रतापसिंहजी, महाराज-कुमार सरदारसिंहजी को साथ लेकर, जयपुर गए। उस समय वहां पर मवेशियों की लेवा-बेची के लिये एक मेला लगा था और महाराज प्रतापसिंहर्जा का विचार वहां पर जोधपुर-रिसाले के लिये घोड़े खरीदने का था। २. वि० सं० १६४७ की चैत्र वदि ३० (ई० स० १८६१ की ८ अप्रेल ) को जोधपुर से मेड़तारोड तक की, क्वॉर सुदि १४ (१६ अक्टोबर ) को मेड़तारोड से नागोर तक की और मँगसिर सुदि ६ (६ दिसंबर) को नागोर से बीकानेर तक की लाइनें खुल गई । इनमें कुल मिलाकर २३,६७,७३५ रुपये खर्च हुए थे। परंतु इसमें से ८,८१,२२० रुपये बीकानेर के हिस्से में पड़े; क्योंकि बीकानेर की तरफ की लाइन में बीकानेर-दरबार का भाग था। [ इसके बाद वि० सं० १९८१ की कार्तिक सुदि ५ ( ई० स० १९२४ की १ नवम्बर) से यह जोधपुर और बीकानेर राज्यों की संयुक्त-रेल्वे जुदा-जुदा करदी गई।] इसी साल तारका प्रबन्ध भी किया गया और मेड़तारोड से कुचामनरोड तक तार की लाइन का बनाना निश्चिय हुआ । वि० सं० १६४६ ( ई० स० १८६३ ) में मारवाड़ जंकशन से मेड़तारोड नक एक के बदले दो तारों की लाइन का प्रबन्ध किया गया । वि० सं० १६५२ ( ई० स० १८६५) में बी. बी. एण्ड सी. आइ और (इस) जे. बी. रेल्वे के बीच कुचामनरोड स्टेशन पर के संयुक्त-कार्य और जोधपुर-बीकानेर रेल्वे के यात्रियों आदि को आगे ले जाने के बाबत संधि हुई । इसके बाद इसमें वि० सं० १६६०, १६७१, १६७२, १६७३, १६७४, १६७६, १६७८, १९८१ और १९८२ (ई० स० १६०३, १६१४, १६१५, १६१६, १६१७, १६१६, १६२१, १९२४ और १६२५ ) में कुछ-कुछ रद्दो-बदल होती रही। ४८३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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