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________________ महाराजा अजितसिंहजी इसी बीच बादशाह ने राठोड़ सरदारों में फूट डालने के लिये स्वर्गवासी महाराज के बड़े भ्राता राव अमरसिंहजी के पौत्र (रायसिंह के पुत्र ) इंद्रसिंह को खासा खिलअत, जड़ाऊ साज़ की तलवार, सोने के साज़ का घोड़ा, हाथी, नक्कारा और निशान देकर जोधपुर का राजा बना दिया । इस पर उसने भी इसकी एवज में बादशाह को ३६ लाख रुपये नज़र करने की प्रतिज्ञा की । इसके बाद वह जोधपुर पर अधिकार करने के लिये दिल्ली से नागोर पहुँचा, और वहाँ के राठोड़-सरदारों को अपनी तरफ़ मिलाने की कोशिश करने लगा । 'अजितोदय ' से ज्ञात होता है कि यह नागोर से जोधपुर भी आया था, परन्तु वहाँ के राठोड़ों ने आपस में ही लड़कर अपना बल क्षीण करना उचित न जान उससे किसी प्रकार की छेड़-छाड़ नहीं की। इसके बाद राठोड़-वीरों ने सलाहकर बादशाह से प्रार्थना की कि हममें से बहुत से सरदार अपने-अपने कुटुम्बों के साथ देश को जाना चाहते हैं । इसलिये यदि आप आज्ञा दें, तो रवाना हो जायें । इस पर बादशाह ने वहाँ पर इनकी संख्या के कम हो जाने में अपना लाभ समझ यह बात स्वीकार कर ली । परंतु साथ ही यह आज्ञा भी दी ख्यातों में लिखा है कि इस घटना के समय सिंघी सुंदरदास ने बादशाह को प्रसन्न करने के लिये स्वामि-धर्म का त्यागकर खजाने का सारा भेद उसे बतला दिया था। १. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७५-१७६ । २. देखो सर्ग ६, श्लो० १-७ । ३. ख्यातों में लिखा है कि राव इन्द्रसिंह बादशाह से मारवाड़ का अधिकार पाकर जोधपुर पहुँचा । इस पर पहले तो चांपावत सोनग आदि सरदारों ने मिलकर उसका सामना करने का इरादा किया, परन्तु फिर शीघ्र ही इन्द्रसिंह के अपने पुत्र को भेजकर प्रलोभन दिलवाने से वे उससे मिल गए और जोधपुर का किला उसे सौंपने का विचार करने लगे । इसकी सूचना मिलते ही दुर्गादास ने सोनग को शत्रुपक्ष में जाने से रोकने के लिये एक पत्र लिखा । परन्तु इन्द्रसिंह के दिए प्रलोभन के सामने इसका कुछ भी असर न होसका । इसके बाद जब वि० सं० १७३६ की भादों सुदि ७ (ई० सन् १६७६ की २ सितम्बर) को यहां का किला इन्द्रसिंह को सौंप दिया गया, तब शीघ्रही उसने अपनी प्रतिज्ञा भंग करदी। यह देख सोनग आदि सरदार सिरोही पहुँच दुर्गादास से मिले । इस पर पहले तो उसने उन्हें इन्द्रसिंह के दिए प्रलोभन में पड़जाने के लिये बड़ा उलाहना दिया, परन्तु फिर सबने मिलकर यवनों से युद्ध करना ठान लिया । ४, सैहरुलमुताख़रीन, भा० १, पृ०.३४३ । २५३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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