SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक-काल इसके और ब्रह्मगुप्त-रचित 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' के रचना-काल के बीच केवल तीन वर्ष का अंतर होने से विद्वान् लोग वर्मलात को व्याघ्रमुख का पिता या उपनाम अनुमान करते हैं। ___ इससे ज्ञात होता है कि गुर्जरों के बाद मारवाड़ का दक्षिणी भाग चावड़ों के अधिकार में रहा था । कलचुरी संवत् ४९० (वि० सं० ७६६ ) के ( लाटदेश के) सोलंकी पुलकेशी के दानपत्र से प्रकट होता है कि उस समय के पूर्व ही अरब लोगों की चदाई से चावड़ों का राज्य नष्ट हो गया था । फारसी के 'फ़तूहुल बुलदान' नामक इतिहास से ज्ञात होता है कि खलीफ़ा हशाम के समय सिंध के शासक जुनैद की सेना ने मारवाड़ और भीनमाल पर चढ़ाई की थी। इस चढ़ाई से चावड़े कमजोर हो गए और कुछ ही काल बाद उनका राज्य पड़िहारों ने दबा लिया। जोधपुर नगर की शहरपनाह से वि० सं० ८९४ का मंडोर के राजा बाउक का एक लेख मिला है । यह शायद मंडोर के किसी वैष्णव-मंदिर के लिये खुदवाया गया था । इसी प्रकार वि० सं० ११८ के दो शिला-लेख बाउक के भाई कक्कुक के घटियाला ( जोधपुर से २० मील उत्तर ) से मिले हैं । इनमें का एक प्राकृत का और दूसरा संस्कृत का है । इनसे प्रकट होता है कि हरिश्चंद्र के पुत्रों ने वि० सं० ६७० के करीब मंडोर के किले पर अधिकार कर वहाँ पर कोट बनवाया था । इसके बाद इसके प्रपौत्र नागभट ने मेड़ता नगर में अपनी राजधानी कायम की और मंडोर में अपने नाम पर नाहड़स्वामिदेव का एक मंदिर बनवार्यों । नाहड़ के बड़े पुत्र तात ने १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग १, पृ० २११, नोट २३ २. जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ( १८६४ ), पृ० ४-६ । इसमें शीलुक का 'स्त्रवणी' और 'वल्लमण्डल पर अधिकार करना लिखा है । अनुमान से ज्ञात होता है कि उस समय मारवाड़ का वायव्य कोण का जैसलमेर से मिला मल्लानी की तरफ का भाग 'स्त्रवणी' और फलोदी की तरफ का भाग 'वल्ल' कहलाता था । इसी लेख में बाउक का मयूर को मारना भी लिखा है । कुछ लोगों का अनुमान है कि उस समय मंडोर के पश्चिमी प्रान्त पर मौर्य वंशियों का राज्य था और यह मयूर उन्हीं का वंशज होगा । कुछ काल बाद पड़िहारों ने उस वंश के राजाओं को सिंध की तरफ भगा दिया था । इस समय उनके वंशज सिंध और मुलतान में मोर के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु उन्होंने इसलाम धर्म ग्रहण कर लिया है। ३. जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसाइटी (१८६५), पृ० ५१७-१८ ४. पृथ्वीराजरासे में मंडोर के नाहराव पड़िहार और पृथ्वीराज चौहान के युद्ध की जो कथा लिखी है वह कपोल-कल्पित ही है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy