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________________ मारवाड़ का इतिहास इसी प्रकार वि० सं० ४४५ के आसपास पश्चिमी क्षत्रपों के राज्य के नष्ट होने पर मारवाड़ के कुछ भाग पर गुर्जरों ने अधिकार कर लिया था । इसी से धीरे-धीरे मारवाड़ का पूर्व की तरफ़ का ( दक्षिण से उत्तर तक का ) सारा भाग गुर्जर - राज्य के अंतर्गत हो गया था और गुर्जरत्रा ( गुर्जर या गुजरात ) कहाता था । चीनी यात्री हुएन्तसंग, जो वि० सं० ६८६ में चीन से रवाना होकर भारत में आया था, भीनमाल को गुजरात की राजधानी लिखता है । वि० सं० २०० के सिवा गाँव ( डीडवाना प्रांत ) से मिले प्रतिहार भोजदेव प्रथम के दानपत्र से उस प्रदेश का भी एक समय गुर्जर - प्रांत में रहना सिद्ध होती है । यही बात कालिंजर से मिले विक्रम की नवीं शताब्दी के लेख से भी प्रकट होती है। वि० सं० ५८१ ( ई० स० ५३२ ) के मंदसोर से मिले यशोधर्मा के लेख में उसके राज्य का विस्तार पूर्व में ब्रह्मपुत्र से पश्चिम में समुद्र तक और उत्तर में हिमालय से दक्षिण में महेन्द्र पर्वत तक होना लिखा है । परंतु अबतक न तो उसके पूर्वजों का ही पता चला है न उत्तराधिकारियों का ही । संभव है उस समय गुर्जर लोग उसके सामंत होगए हों 1 1 वि० सं० ६८५ में भीनमाल के रहनेवाले ब्रह्मगुप्त ने 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' की रचना की थी । उस समय वहाँ पर चावड़ा वंश के व्याघ्रमुख नामक राजा का राज्य था । भीनमाल के प्रसिद्ध कवि माघ ने अपने 'शिशुपालवध' नामक महाकाव्य के कवि - वंश-वर्णन में अपने दादा को राजा वर्मलात का मंत्री लिखा है । वसंतगढ़ ( सिरोही - राज्य ) से, वि० सं० ६८२ का, इस बर्मलात का एक शिलालेख मिला है। पूर्वार्ध तक प्रचलित थे । परंतु क्रमशः इनका आकार छोटा होने के साथही इनकी मुटाई बढ़ती गई और धीरे धीरे इसमें का राजा का चेहरा ऐसा भद्दा हो गया कि वह गधे के खुर के समान दिखाई देने लगा । इसी से इसका नाम गधिया ( गधैया ) हो गया । इस प्रकार के सिक्के मारवाड़ के अनेक प्रदेशों से मिले हैं । १. एपिग्राफिया इंडिका, भाग ५, पृ० २११ ( गुर्ज्जरत्रा भूमौडेण्ड्वानकविषय ० ) २. एपिग्राफिया इंडिका, भाग ५, पृ० २१०, नोट ३ ( श्रीमद्गुर्जरत्त्रामंडलांतःपातिमंगलानक ० ) ३. विक्रम की छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध के करीब वैसवंशी प्रभाकरवर्धन ने सिंध और गुजरात वालों से युद्ध कर उन्हें हैरान कर दिया था, ऐसा 'श्रीहर्षचरित' से पाया जाता है । इसका छोटा पुत्र हर्षवर्धन भी बड़ा प्रतापी था । उसने उत्तरापथ के राजाओं पर चढ़ाई कर उधर के देशों को जीत लिया था । यह बात विजयभट्टारिका के दानपत्र और हुएन्संग के लेखों से प्रकट होती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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