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________________ मारवाड़ का इतिहास अपने छोटे भाई भोज को राज्य देकर मांडव्य के आश्रम ( मंडोर ) में तपस्या की। इसी भोज की छठी पीढ़ी में कक्क हुआ। जिस समय कन्नौज और भीनमाल के पडिहार राजा वत्सराज ने मुंगेर के गौड़ राजा पर चढ़ाई की, उस समय यह कक्क भी, सामंत की हैसियत से, वत्सराज के साथ था । परंतु जिस समय इस वत्सराज ने मालवे पर चढ़ाई की, उस समय मान्यखेट का राष्ट्रकूट राजा ध्रुवराज मालवे वालों की सहायता को जा पहुँचा । इस से वत्सराज को भागकर मारवाड़ में आना पड़ा । श० सं० ७०५ (वि० सं० ८४०) में जिनसेन ने 'हरिवंशपुराण' लिखा था। उसमें वत्सराज को पश्चिम ( मारवाड़ ) का राजा लिखो है । इसका पुत्र नागभट द्वितीय था । पुष्कर का घाट बनवानेवाला प्रसिद्ध नाहड़ यही होगा । इसके समय का वि० सं० ८७२ का एक लेख बुचकला (बीलाड़ा परगने) से मिला है । इसी ने अपनी राजधानी भीनमाल से हटाकर कन्नौज में स्थापित की थी। ___उपर्युक्त कक्क का पुत्र बाउक हुआ। इसके बाद इसके भाई कक्कुक ने मारवाड़ और गुजरात के लोगों से मित्रता की, घटियाले (रोहिंसकूप ) में बाजार बनवाया और मंडोर तथा घटियाले में जयस्तंभ खड़े किए । वि० सं० १९३ का एक लेख प्रतिहार (पड़िहार ) जसकरण का भी चेराई ( जोधपुर-राज्य ) से मिला है । वि० सं० १२०० के करीब तक तो मंडोर पर पड़िहारों का ही राज्य रहा। परंतु इसके करीब नाडोल के चौहान रायपाल ने वहां पर अपना अधिकार कर लिया और पड़िहार लोग छोटे-छोटे जागीरदारों की हैसियत से रहने लगे। वि० सं० १२०२ की समाप्ति के करीब का चौहान रायपाल के पुत्र सहजपाल का एक टूटा हुआ लेखें मंडोर से मिला है । उससे भी इस बात की पुष्टि होती है । १. हांसोट (भड़ोच जिले ) से चौहान भर्तृवट्ठ द्वितीय का, वि० सं० ८१३ का, एक दानपत्र मिला है । उसमें उसे पड़िहार नागावलोक का सामंत लिखा है । यह नागावलोक इस वत्सराज का पितामह था । इसके राज्य का उत्तरी भाग मारवाड़ और दक्षिणी भाग भडोच तक फैला हुआ था। इसके वंशज भोजदेव की ग्वालियर की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसने अपने राज्य पर सिंध की तरफ से हमला करनेवाले बल्लोचों को हराकर भगा दिया था। (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (१६०३-४ ), पृ० २८० २. 'वत्सादिराजे परां' (बाँबे गजेटियर, जि० १, भा॰ २, पृ० १६७, नोट २ ३. एपिग्राफिया इंडिका, भा० ६, पृ० १६६-२०० ४. आर्कियॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया ( १६०६-१०), पृ० १०१-३ । यद्यपि इस लेख में संवत् नहीं लिखा है, तथापि सहजपाल के पिता रायपाल की वि० सं० १२०२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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