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________________ मंत्रीश्वर विमलशाह आगे भले-२ फीके पड़ते थे । विमल की कार्य कुशलता देखकर पिताजीने घरका साग भार इन्हें सौंपकर गुरु महाराज के पास दीक्षा अंगीकार कर आत्म कल्याणके मंगल मार्ग पर प्रयाण किया। विमलशाह बचपनसे ही बड़े पराक्रमी थे। उनके बुद्धि कौशल और तेजके आगे भले २ फीके पड़ जाते थे। ऐसे तेजस्वी व्यक्तियों के शौर्य एवं प्रतापसे द्वेष रखनेवाले व्यक्तियों का होना स्वाभाविक ही है । ईर्ष्यालु जन विमलशाह के विरुद्ध षड़यंत्र रचने लगे। प्रतिकूल परिस्थितियों को देखकर माता वीरमति विमल को लेकर अपने पीहर चली गई। विमल अब अपने मामाके यहाँ बड़े हो रहे हैं। एक समय की बात है, विमल घोड़ी लेकर जंगलमें चराने जाते हैं । वहाँ एक नवयौवना इनके सामने आकर खड़ी होती है। विमलको चलायमान करने के लिये वह सुन्दरी भनेकानेक प्रयत्न करती है परन्तु उसे जरा भी सफलता नहीं मिलती । ये जरा भी विचलित नहीं होते । यह नवयुवती अन्य कोई नहीं, किन्तु आरासणा की अधिष्ठात्री देवी अंबाजी थीं । विमल की परीक्षा लेने के लिए आप आई थी। ऐसी युवावस्था में विमल की इतनी बढ़ता देखकर अंबाजी आप पर प्रसन्न हो गई और इन्हें वरदान देकर अदृश्य हो गई। __गाँवकी खुली हवा, सात्विक भोजन तथा निश्चित् जीवन आदि के कारण विमल का शरीर बड़ा गठीला बन गया था । पाटण के नगरसेठ श्रीदत्त के श्री नामकी पुत्री थी। नगरसेठ अपनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034552
Book TitleMantrishwar Vimalshah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani
PublisherLabdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal
Publication Year1967
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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