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________________ ॥ नमो जिणाणं ॥ मंत्रीश्वर विमलशाह १ : ग्यारहवीं शताब्दी के मंत्रीश्वर मंत्रीश्वर विमलशाह के नामसे कौन अपरिचित है? जिन्होंने अर्बुदाचल पर भव्य शिल्प स्थापत्य और कला की मनोहर रचना स्वरूप अद्वितीय जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया है, उन शूरवीर नरपुंगव विमलशाह की कीर्ति-उनकी अमर यशोगाथा आज तक जनता की वाणीमें मुखरित हो रही है। वि. सं. ८०२ में वनराज चावड़ाने जब अणहिपुर पाटण को बसाया था तभी करोडपति नीन मंत्री भी गांभु से यहां आकर बसे थे । उन्हीं के वंशजों में पाटण में शूरवीर लाहिर ने दंडनायक के रूपमें ख्याति प्राप्त की थी। मंत्रीश्वर लाहिर के वीर नामक एक पुत्र था जिसका उपयुक्त समयमें वीरमति कन्यारत्न के साथ पाणिग्रहण संपन्न हुआ था तथा इसी वीरमति की कुक्षी से वि. सं. १०४० के आसपास नरपुंगव विमलशाह का जन्म हुआ था । "पुत्र के लक्षण पालने में" इस उक्तिको चरितार्थ करती हुई इनकी भव्य मुखाकृति इनके महान् उज्जवल भविष्य की द्योतक थी। बालक विमल द्वितीया के चन्द्रमा की भाँति शनैः शनैः बड़े हुए, तथा विद्याभ्यासः एवं कला कौशलमें पारंगत हो गए। इनके तेजके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034552
Book TitleMantrishwar Vimalshah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani
PublisherLabdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal
Publication Year1967
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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