SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गर्भावस्था * सकते हैं। बस इस ही तरह भगवन्त ने मातेश्वरी पर करुणा की; इस में विशिष्टता तो यह मिलती है कि भगवान् गर्भ काल से ही कितने दयालु थे जिसकी अग्रिम जीवनी से आप को सीखने मिलेगा (२) मातेश्वरी त्रिसलादेवी को पुत्र-प्रेम कितना अगाध था यह उनका दयनीय शोकमय दुःख-दर्द से पता चलता है, उनने नाना प्रकार के देव को उलहने दिए, पर आखिर अपनी करणी का चित्र सापने रखकर भारी पश्चाताप किया और संसार भर की माताओं की आँखें खोल कर शिष्ट सामग्री उन के सामने रखदी, एक इस पुण्यमूर्ति के पीछे संख्यातीत लोगों को दुःख उठाना पड़ा, यह मामूली बात नहीं है- क्या इससे संसार की माताएं पुत्रप्रेम का पाठ सीखेंगी? और क्या इस नैतिक जीवन में से आप भी कुछ खरीदेंगे? जरूर विचार करिये (३) अन्ततः मातृवात्सल्य का बदला भगवान् ने गर्भ में रहकर ही अपनी प्रतिज्ञा से पूण करदिया- स्वयं लेखक ने भी दीक्षा के पूर्व ऐसी प्रतिज्ञा की थी कि पिता श्री के जीवन-काल में संयम धारण नहीं करना; कारण कि उनको अत्यन्त दुःख होने का संभव था, माताजी तो ग्यारह साल की उम्र में ही गुजर चुकी थीं- सुपुत्रों के यह लक्षण हैं कि अपने माता-पिता को दुःखी कर गृहवास का त्यागन करें, वे आक्रन्द करते रहें, उनको कोइ आधार न हो, उनकी कोई व्यवस्थान हो और उनको रखड़ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy