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________________ २८ ] * महावीर जीवन प्रभा " फहराने लगीं, द्वारों पर तोरण बांधे गए, मोतियों के साथिये रचे गये, पंचवर्णीय पुष्पों के ढेर लगाये गये, तमाम स्त्री-पुरुषों ने नवीन वस्त्र आभूषण पहिने, सधवा और कुमारिकाएँ अक्षत और फलों के थाल लेलेकर मंगल गीत गाती हुई त्रिसलादेवी के समीप आतीं हैं, भट्ट लोग विरुदावली बोलने लगे; इस तरह राज मार्ग चतुर्वर्ण-समूह से भरगया, श्रृंगारे हुए अनेक हाथी-घोड़े - रथादि विलसित हो रहे हैं, मंगल गीत गाये जारहे हैं वाजिन्त्र बज रहे हैं; दुंदुभी मेघ समान गर्जारव कर रही है; इस प्रकार के सम्मर्दन से राज्य स्थान विशाल होने पर भी संकीर्ण होगया है - जिन मंदिरों में स्नात्र पूजा कराई जारहीं हैं, बन्दी जनों को कारावास से मुक्त कर दिये गए हैं, मुनियों को बन्दन पूर्वक प्रतिलाभा जारहा है, स्वधर्मियों की भक्ति की जारही है; इस कदर समग्र शहर में आनन्द ही आनन्द छा रहा है. प्रकाश - अब चारों ही बातों पर प्रकाश डालते हैं( १ ) कुदरत के नियम को मानो तत्रदील कर दिया, ऐसा गर्भस्थ भगवान् की निश्चलता का अर्थ लगता है, यह कहाँ तक ठीक माना जा सकता है, ऐसा सहज विचार उत्पन्न होगा; पर संसार में अपवाद ( Exception) एक ऐसा नियम है कि सशक्त और समर्थ उसकी आचरण कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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