SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०] * महावीर जीवन प्रभा * छोड़ कर चारित्र लेलेना उचित नहीं है। इसही लिये भगवन्त ने आज्ञा का मार्ग प्रधान रक्खा. जनता इससे बोध लेकर अपना नैतिक और धार्मिक जीवन उन्नत बनावें (४) भगवान् ने अपने अंग का एक देश हिला कर मातेश्वरी को खुश खुश करदी माताजी के हर्षोद्गार न जाने किस अन्तर-पट से निकले जिसका पता नहीं चला, उनके मौलिक उद्गारों से शहर के समस्त लोगों के हृदय नौ नौ गज़ ऊँचे उछल रहे थे; इस वक्त स्वर्ग का आनन्द भी उनके सामने तुच्छ सा था. क्या ऐसे हर्ष प्रसङ्ग में आप भी शरीक होकर आनन्द लूटेंगे ? अवश्य भावना रखना चाहिये. - - - (गर्भ रक्षा और पालन) त्रिसला माता आनन्दमन बनकर भलि-भाँति गर्भ रक्षा और गर्भ-पालन करती थीं- अति शीत-आहार (बहुत ठंडा-बासी) अति उष्ण-आहार (गरम-गरम) झूठ-मिर्च आदि का तीक्ष्ण आहार, गुड़-शकर आदि का मिष्ट आहार, चने उड़दादि का रूक्ष आहार, फल-फूलादि कास्निग्ध आहार, घृत-तैलादि का चिकना आहार, घृतवर्जित लूखा आहार अतिशय रूप से नहीं करती थीं 'अतिसर्वत्र वर्जयेत्' इस सिद्धान्त का पालन करती थीं गर्भवती सुन्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy