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________________ ( ८ ) अलग होते ही रघुनाथ जीने उनका घोर विरोध करना शुरू किया। परन्तु भिखणजी इन सबसे विचलित होने वाले न थे। वगड़ीमें भिखणजीको स्थान न देनेका ढिंढोरा पिटवा दिया गया पर ता भी भिखणजोने साधुओंके लिए निर्मित स्थानका आश्रय न लिया और बगड़ीके बाहर जैतसिंहजीकी छत्रियों में ठहरे। यहाँ पर रघुनाथजीसे फिर जोरकी चर्चा हुई और नाना प्रकारके उपाय करने पर भी स्वामीजी उनके सामिल न आये। रघुनाथजी भिखणजीको जब पुनः अपने साथ न ला सके तब उन्होंने स्वामीजीसे कहा कि मैं अब तुम्हारे पैर न जमने दूंगा। तू जहां जायगा वहां तेरा पीछा करूंगा और तुम्हारा घोर बिरोध होगा। इन धमकियोंने भीखनजी को जरा भी न डरा पाया और निर्भयताके साथ उन्होंने बगड़ीसे बिहार करना शुरू किया। बिहार करते करते भीखणजीके अनुयायी तेरह साधु हो लिए थे। इनमें पांच रघुनाथ जीकी सम्प्रदायके, छः जयमलजी की सम्द्रदायके तथा दो अन्य सम्पदायके थे। इन साधुओंमें थिरपालजी, टोकरजी, हरनाथजी, भारीमलजी वीरभानजी आदि सामिल थे। इस समय तक १३ श्रावक भी भीखणजीकी पक्षमें हो गये थे। एक समय की बात है कि जोधपुरके बाजार में एक खाली दुकानमें श्रावकोंने सामयिक तथा पोषधादि किया। इसी समय जोधपुरके दिवान फतेहचन्दजी सींघीका बाजार होकर जाना हुआ। साधुवोंके निर्दिष्ट स्थानको छोड़ बाजारके चोहटेमें कुछ श्रावकोंको सामयिक आदि धर्मकृत्य करते देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ। उनके पूछने पर श्रावकोंने रघुनाथजीसे भीखणजीके अलग होनेकी सारी बात कह सुनायी तथा जैनशास्त्रोंकी दृष्टि से अपने निर्मित बनाये मकानों में रहना साधुके लिए अशास्त्रीय है यह भी समझाया। फतेहचन्दजीके पूछने पर यह भी बतलाया कि भीखणजीके मतानुयायी १३ ही साधु हैं। यह सब बातें सुनकर तथा १३ ही साधु और १३ ही श्रावकोंका आश्चर्यकारी संयोग देख कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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