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________________ आत्म-कल्याणके लिये ही घर-बारको छोड़ा है अतः झूठा पक्षपात छोड़ कर सच्चे मार्गको ग्रहण करना चाहिये। हमें शास्त्रीय वचनोंका प्रमाण मिला कर मिध्या पक्ष न रखना चाहिये, पूजा प्रशंसा तो कई बार मिल चुकी है । पर सच्चा मार्ग मिलना बहुत ही कठिन है। अतः सच्चे मार्गको प्राप्त करने में इन बातोंको नगण्य समझना चाहिये । आपको इसमें कोई सन्देह न रहना चाहिए कि यदि आपने शुद्ध जैन मार्गको अङ्गीकार किया तो मेरे लिए आप पहिलेकी तरह ही पूज्य रहेंगे। परन्तु भिखणजीकी इस विनम्र चर्चा का रघुनाथजी पर कोई असर न हुआ। वे पंचमारे का प्रभाव कह कर ही उनकी बातें टालते रहे । स्वामी भीखणजी इस उत्तरसे सन्तुष्ट होने वाले न थे। उनकी दृष्टिसे इस दुषमकालमें सम्यक् चरित्र पालन करनेके उद्यममें कमी आनेके बदले और अधिक बल आना चाहिए था। भगवानने जो पंचम पारे। को दुषमकाल बतलाया था उसका तात्पर्य यह न या कि इस काल में कोई सम्यक धर्मका पालन ही न कर सकेगा पर उसका अर्थ यह था कि चरित्र पालनमें नाना प्रकारकी शारीरिक तथा मानसिक कठिनाइयां रहेंगी इसलिए चरित्र पालनके लिए बहुत अधिक पुरुषार्थकी आव श्यकता होगी। उन्होंने भगवान्महावीरका यहकथन पढ़ लियाथा कि जो पुरुषार्थहीन होंगे और साधु-प्रण पालने में असमर्थ होंगे वे ही समयका दोष बतला कर शिथिलाचारको छोड़ नहीं सकेंगे। गुरु रघुनाथजीको जब हर प्रकारकी चेष्टा करके भी स्वामीजी ठीक पथपर न ला सके तब स्वामीजी स्वयं ही उनसे अलग हो गये और शुद्ध संयम मार्गपर चलनेका दृढ़ निश्चय कर लिया। भिखणजीने बगड़ी शहरमें रघुनाथजीका संग छोड़ दिया और उनसे अलग विहार कर दिया। भारीमालजी प्रादि कई सन्त भी उनके साथ हो गये। इस प्रकार गुरु रघुनाथजीसे अलग होकर उन्होंने अपने लिये विपत्तियोंका पहाड़ खड़ा कर लिया। उस समय रघुनाथजीकी अच्छी प्रतिष्ठा थी और उनके श्रद्धालु भक्तोंकी संख्या भी बहुत अधिक थी। भिखणजीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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