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________________ पञ्चम अध्याय । ६५७ उक्त देवालय के बनवाने में द्रव्य के व्यय के विषय में एक ऐसी दन्तकथा है कि - शिल्पकार अपने हथियार ( औज़ार ) से जितने पत्थर कोरणी को खोद कर रोज़ निकालते थे उन्हीं ( पत्थरों ) के बराबर तौल कर उन को रोज़ मजूरी के रुपये दिये जाते थे, यह क्रम बराबर देवालय के बन चुकने तक होता रहा था । दूसरी एक कथा यह भी है कि- दुष्काल ( दुर्भिक्ष वा अकाल ) के कारण आबू पर बहुत से मजदूर लोग इकट्ठे हो गये थे, बस उन्हीं को सहायता पहुँचाने के लिये यह देवालय बनवाया गया था । करता है, परन्तु साधु, यती, और ब्राह्मण आदि को कर नहीं देना पड़ता है, यहाँ की ओर यहाँ के अधिकार में आये हुए ऊरिया आदि ग्रामों की उत्पत्ति की सर्व व्यवस्था उक्त अधिकारी ही करता है, इस के सिवाय -यहाँ पर बहुत से सर्कारी नौकरों, व्यापारियों और दूसरे भी कुछ रहिवासियों ( रईसों) की वस्ती है, यहाँ का बाज़ार भी नामी है, वर्त्तमान में राजपूताना आदि के एजेंट गवर्नर जनरल के निवास का यह मुख्य स्थान है इस लिये यहाँ पर राजपूताना के राजों महाराजों ने भी अपने २ बँगले बनवा लिये हैं और वहाँ वे लोग प्रायः उष्ण ऋतु में हवा खाने के लिये जाकर ठहरते हैं, इस के अतिरिक्त उन ( राजों महाराजों ) के दर्बारी वकील लोग वहाँ रहते हैं, अर्वाचीन सुधार के अनुकूल सर्व साधन राज्य की ओर से प्रजा के ऐश आराम के लिये वहाँ उपस्थित किये गये हैं जैसे-म्यूनीसिपालिटी, प्रशस्त मार्ग और रोशनी का सुप्रबन्ध आदि, यूरोपियन लोगों का भोजनालय ( होटल ), पोष्ट आफिस और सरत का मैदान, इत्यादि इमारतें इस स्थल की शोभारूप हैं । 2. आबू पर जाने की सुगमता - खरैड़ी नामक स्टेशन पर उतरने के बाद उस के पास में ही मुर्शिदाबाद निवासी श्रीमान् श्रीबुध सिंह जी रायबहादुर दुघेड़िया के बनवाये हुए जैन मन्दिर और धर्मशाला हैं, इस लिये यदि आवश्यकता हो तो धर्मशाला में ठहर जाना चाहिये नहीं तो सवारी कर आबू पर चले जाना चाहिये, आबू पर डाक के पहुँचाने के लिये और वहाँ पहुँचाने को सवारी का प्रबंध करने के लिये एक भाड़ेदार रहता है उस के पास ताँगे आदि भाड़े पर मिल सकते हैं, आबू पर जाने का मार्ग उत्तम है तथा उस की लम्बाई सत्रह माईल की है, ताँगे में तीन मनुष्य बैठ सकते हैं और प्रति मनुष्य ४) रुपये भाड़ा लगता है अर्थात् पूरे ताँगे का किराया १२) रुपये लगते हैं, अन्य सवारी की अपेक्षा ताँगे में जाने से आराम भी रहता है, आबू पर पहुँचने में ढाई तीन घण्टे लगते हैं, वहाँ भाड़ेदार ( ठेके वाले) का आफिस है और घोड़ा गाड़ीका तवेला भी है, आबू पर सब से मत्तम और प्रेक्षणीय ( देखने के योग्य ) पदार्थ जैन देवालय है, वह भाडेदार के स्थान से डेढ़ माइल की दूरी पर है, वहाँ तक जाने के लिये बैल की और घोड़े की गाड़ी मिलती हैं, देलवाड़े में देवालय के बाहर यात्रियों के उतरने के लिये स्थान बने हुए हैं, यहाँ पर बनिये की एक दूकान भी है जिस में आटा दाल आदि सब सामान मूल्य से मिल सकता है, देलवाड़ा से थोडी दूर परमार जाति के गरीब लोग रहते हैं जो कि मज़दूरी आदि काम काज करते हैं और दही दूध आदि भी बेंचते हैं, देवालय के पास एक बावड़ी है उसका पानी अच्छा है, यहाँ पर भी एक भाड़ेदार घोड़ों को रखता है इस लिये कहीं जाने के लिये घोड़ा भाड़े पर मिल सकता हैं, इस से अचलेश्वर, गोमुख, नखी तालाव और पर्वत के प्रेक्षणीय दूसरे स्थानों पर जाने के लिये तथा सैर करने को जाने के लिये बहुत आराम है, उष्ण ऋतु पर बड़ी बहार रहती है इसी लिये बड़े लोग प्रायः उष्ण ऋतु को वहीं व्यतीत करते है ॥ आबू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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