SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५६ जैनसम्प्रदायशिक्षा। उक्त दोनों देवालय केवल संगमरमर पाषाण के बने हुए हैं और उन में प्राचीन आर्य लोगों की शिल्पकला के रूप में रन भरे हुए हैं, इस शिल्पकला के रत्नभण्डार को देखने से यह बात स्पष्ट मालूम हो जाती है कि-हिंदुस्थान में किसी समय में शिल्पकला कैसी पूर्णावस्था को पहुँची हुई थी। इन मन्दिरों के बनने से वहाँ की शोभा भकथनीय ही गई है, क्योंकि-प्रथम तो आबू ही एक रमणीक पर्वत है, दूसरे-ये सुन्दर देवालय उस पर बन गये हैं, फिर भला शोभा की क्या सीमा हो सकती है ? सच है-"सोना और सुगन्ध" इसी का नाम है। हुआ है, यह भूगर्भशास्त्रवेत्ताओं का मत है, यह पहाड़ समुद्र की सपाटी से घाटमाथा तक ४००० फुट है और पाया से ३००० फुट है तथा इस के सर्वान्तिम ऊँचे शिखर ५६५३ फुट हैं उन्हीं को गुरु शिखर कहते हैं, ईस्वी सन् १८२२ में राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासलेखक कर्नल टाड साहब यहाँ (आबूराज) पर आये थे तथा यहाँ के मन्दिरों को देख कर अत्यन्त प्रसन्न हो कर उन की बहुत तारिफ की थी, देखिये! यहाँ के जैन मन्दिरों के विषय में उन के कथन का सार यह है-"यह बात निर्विवाद है कि इस भारतवर्ष के सर्व देवालयों में ये आबू पर के देवालय विशेष भव्य हैं और ताजमहल के सिवाय इन के साथ मुकाबिला करनेवाली दूसरी कोई भी इमारत नहीं है, धनाढ्य भक्तों में से एक के खड़े किये हुए आनन्ददर्शक तथा अभिमान योग्य इस कीर्तिस्तम्भ की अनहद सुन्दरता का वर्णन करने में कलम अशक्त है" इत्यादि, पाठकगण जानते ही हैं कि-कर्नल टाड साहब ने राजपूताने का इतिहास बहुत सुयोग्य रीति से लिखा है तथा उन का लेख प्रायः सब को मान्य है, क्योंकि-जो कुछ उन्हों ने लिखा हैं वह सब प्रमाणसहित लिखा है, इसी लिये एक कवि ने उन के विषय में यह दोहा कहा है-"टाड समा साहिब विना, क्षत्रिय यश क्षय थात। फार्बस सम साहिब विना, नहिँ उधरत गुजरात" ॥ १॥ अर्थात् यदि टाड साहब न लिखते तो क्षत्रियों के यश का नाश हो जाता तथा फास साहब न लिखते तो गुजरात का उद्धार नहीं होता॥१ तात्पर्य यह है कि-राजपताने के इतिहास को कर्नल टाड साहब ने और गुजरात के राजाओं के इतिहास को मि० फार्बस साहब ने बहुत परिश्रम करके लिखा है ॥ १-इस पवित्र और रमणीक स्थान की यात्रा हम ने संवत् १९५८ के कार्तिक कृष्ण ७ को की थी तथा दीपमालिका (दिवाली) तक यहाँ ठहरे थे, इस यात्रा में मकसूदावादनिवासी राय बहादुर श्रीमान् श्री मेघराज जी कोठारी के ज्येष्ठ पुत्र श्री रखाल बाबू स्वर्गवासी की धर्मपत्नी श्राविका मुन्नु कुमारी और उन के मामा बच्छावत श्री गोविन्दचन्द जी तथा नौकर चाकरों सहित कुल सात आदमी थे, (इन की अधिक विनती होने से हमें भी यात्रासंगम करना पड़ा था), इस यात्रा के करने में आबू, शेत्रुञ्जय, गिरनार, भोयणी और राणपुर आदि पञ्चतीर्थी की यात्रा भी बड़े आनन्द के साथ हुई थी, इस यात्रा में जो इस (आबू) स्थान की अनेक बातों का अनुभव हमें हुआ उन में से कुछ बातों का वर्णन हम पाठकों के ज्ञानार्थ यहाँ लिखते हैं: आबू पर वर्तमान वस्ती-आबू पर वर्तमान में वस्ती अच्छी है, यहाँ पर सिरोही महाराज का एक अधिकारी रहता है और वह देलवाड़ा (जिस जगह पर उक्त मन्दिर बना हुआ है उस को इसी 'देलवाड़ा' नाम से कहते हैं) को जाते हुए यात्रियों से कर (महसूल) वसूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy