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________________ ५८६ जैनसम्प्रदायशिक्षा | हमारे इस पूर्वोक्त (पहिले कहे हुए ) वचन पर थोड़ा सा ध्यान दो तो हमारे कथन का आशय ( मतलब ) तुम्हें अच्छे प्रकार से मालूम हो जावेगा । ( प्रश्न ) आपने भूत प्रेत आदि का केवल बहम बतलाया है, सो क्या भूत प्रेत आदि है ही नहीं ? ( उत्तर ) हमारा यह कथन नहीं है कि भूत प्रेत आदि कोई पदार्थ ही नहीं है, क्योंकि हम सब ही लोग शास्त्रानुसार स्वर्ग और नरक आदि सब व्यवहारों के माननेवाले हैं अतः हम भूत प्रेत आदि भी सब कुछ मानते हैं, क्योंकि जीवविचार आदि ग्रन्थों में व्यन्तर के आठ भेद कहे हैं- पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व, इस लिये हम उन सब को यथावत् ( ज्यों का त्यों ) मानते हैं, इस लिये हमारा कथन यह नहीं है कि भूत प्रेत आदि कोई पदार्थ नहीं है किन्तु हमारे कहने का मतलब यह है कि गृहस्थ लोग रोग के समय में जो भूत प्रेत आदि के बहम में फँस जाते हैं सो यह उन की मूर्खता है, क्योंकि - देखो ! ऊपर लिखे हुए जो पिशाच आदि देव हैं वे प्रत्येक मनुष्य के शरीर में नहीं आते हैं, हां यह दूसरी बात है कि पूर्व भव ( पूर्व जन्म ) का कोई वैरानुबन्ध ( वैर का सम्बंध ) हो जाने से ऐसा हो जावे ( किसी के शरीर में पिशाचादि प्रवेश करे ) परन्तु इस बात की तो परीक्षा भी हो सकती है अर्थात् शरीर में पिशाचादि का प्रवेश है वा नहीं है इस बात की परीक्षा को तुम सहज में थोड़ी देर में ही कर सकते हो देखो ! जब किसी के शरीर में तुमको भूत प्रेत आदि की सम्भावना हो तो तुम किसी छोटी सी चीज़ को हाथ की मुट्ठी में बन्द करके उससे पूछो कि हमारी मुट्ठी में क्या चीज़ है ? यदि वह उस चीज को ठीक २ बता दे तो पुनः भी दो तीन वार दूसरी २ चीजों को लेकर पूँछो, जब कई वार ठीक २ सब वस्तुओं को बतला दे तो बेशक शरीर में भूत प्रेत आदि का प्रवेश समझना चाहिये, यही परीक्षा भैरूँ जी तथा मावढ्याँ जी आदि के भोपों पर ( जिन पर भैरूँ जी आदि की छाया का आना माना जाता है) भी हो सकती है, अर्थात् वे ( भोपे ) भी यदि वस्तु को ठीक २ बतला देवें तो अलवत्तह उक्त देवों की छाया उन के शरीर में समझनी चाहिये, परन्तु यदि मुट्ठी की चीज को न बतला सकें तो ऊपर कहे हुए दोनों को झूठा समझना चाहिये । (प्रश्न ) महाशय ! हम ने आप की बतलाई हुई परीक्षा को तो कभी नहीं किया, क्योंकि यह बात आजतक हम को मालूम ही नहीं थी, परन्तु हम ने भूतनी को निकालते तो अपनी आँखों से ( प्रत्यक्ष ) देखा है, वह आप से कहता हूँ, सुनिये - मेरी स्त्री के शरीर में महीने में दो तीन वार भूतनी आया करती थी, में ने बहुत से झाड़ा झपाटा करने वालों से झाड़े झपाटे आदि करवाये तथा उन के कहने के अनुसार बहुत सा द्रव्य भी खर्च किया, परन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ, आखिरकार झाड़ा देनेवाला एक उस्ताद मिला, उस ने मुझसे कहा कि - " मैं तुम को आँखों से भूतिनी को दिखला दूँगा तथा उसे निकाल दूँगा परन्तु तुम से एक सौ एक रुपये लूंगा" मैं ने उस की बात को स्वीकार कर लिया, पीछे मंगलवार के दिन शाम को वह मेरे पास आया और मुझ से फुलस्केप कागज़ का आधा शीट ( तख्ता ) मंगवाया और उस ( कागज ) को मन्त्र कर मेरी स्त्री के हाथ में उसे दिया और लोवान की धूप देता रहा, पीछे मन्त्र पढ़ कर सात कंकडी उस ने मारी और मेरी स्त्री से कहा कि - "देखो ! इस में तुम्हें कुछ दीखता है" भेरी स्त्री ने लज्जा के कारण जब कुछ नहीं कहा तब मैं ने उस कागज को देखा तो उस में साक्षात् भूतनी का चेहरा मुझ को दीस पड़ा, तब मुझ को विश्वास हो गया और भूतनी निकल गई, पीछे उस के कहने के अनुसार मैं ने उसे एक सौ एक रुपये दे दिये, जाते समय उस ने एक यत्र भी बना कर मेरी स्त्री के बँधवा दिया और वह चला गया, उस के चले जाने के बाद एक महीने तक मेरी स्त्री अच्छी रही परन्तु फिर पूर्ववत् ( पहिले के समान ) हो गई, यह मैं ने अपनी आँखों से देखा है, अब यदि कोई इस को झुंड कहे तो भला मैं कैसे मानूं ? (उत्तर) तुम ने जो आखों से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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