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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
वैद्य की परीक्षा का भी कर लेना वा दूसरे से करा लेना सर्वसाधारण को अत्यावश्यक ( वहुत जरूरी) है, परन्तु महान् शोक का विषय है कि-वर्तमान में सर्वसाधारण और गरीब लोग तो क्या किन्तु बड़े २ श्रीमान् लोग भी इस विषय में कुछ भी ध्यान नहीं देते हैं, इसी का यह फल है कि-कुशल अथवा मूर्ख वैद्य की परीक्षा का करनेवाला शायद ही सौ में से एकाध मिलता है, इस लिये सर्वसाधारण से हमारा यही निवेदन है कि-दूध को मथ (विलो) कर घृत निकालने के समान जो हमने इस ग्रन्थ के इसी अध्याय के प्रारम्भ में वैद्यकविद्या का सार लिखा है उस को अवकाश ( फुर्सत ) के समय में पाठकगण दुसरी व्यर्थ (फिजूल) गप्पों में तथा नानाप्रकार के कल्पित किस्से कहानियों की पुस्तकों के पड़ने में अपने अमूल्य (वेशकीमती) समय को न गँवा कर यदि विचार करें तो उन को अनेक प्रकार का लाभ हो सकता है, तथा इस के प्रभाव से उन में कुशल तथा मूर्ख वैद्य की परीक्षा करने की शक्ति भी उत्पन्न हो सकती है।
अब ऊपर कही हुई चिकित्साओं के सिवाय-जो अंग्रेजी तथा देशी दवाइयां इस रोगपर पूर्ण लाभ करती हैं उन्हें लिखते हैं:
१-पोटास आयोडाइड १५ ग्रेन, लीकर हाइड्रार चीरी परकारीड २ ड्राम, एक्स्ट्राक्ट सारसापरीला ३ ड्राम और चिरायते की चाय ३ औंस, इन सब औषधों को मिला कर उस के तीन भाग करने चाहिये तथा उन में से एक भाग को सबेरे, एक भाग को मध्याह्न में (दोपहर को) और एक भाग शाम को पीना चाहिये, यह दवा अति उत्तम है अर्थात् गर्मी के सर्व रोगों में अति उपयोगी (फायदेमन्द) मानी गई है, इस दवा में जो पोटास आयोडाइड की १५ ग्रेन की मात्रा लिखी है उस के स्थान में एक हफ्ते के बाद २० ग्रेन की मात्रा कर देनी चाहिये अर्थात् एक हफ्ते के बाद उक्त दवा २० ग्रेन डालना चाहिये, तथा दूसरे हफ्ते में २५ ग्रेन तक बढ़ा देना चाहिये, इस दवा को प्रारंभ करते ही यद्यपि तीन दिन तक श्लेष्म (कफ अर्थात् जुकाम) हो जाता है परन्तु वह पीछे आप ही दो चार दिन में वन्द हो जाता है, इस लिये श्लेष्म के हो जाने से डरना नहीं चाहिये तथा दवा को बराबर लेते रहना चाहिये और इस दवा का सेवन दो महीने तक करना चाहिये, यदि किसी कारण से इस का दो महीने तक सेवन न बन सके तो चार हफ्ते तक तो इस का सेवन अवश्य ही करना चाहिये, इस दवा के समान अंग्रेजी दवाइयों में गर्मीपर फायदा करनेवाली दूसरी कोई दवा नहीं है, इस दवा का सेवन करने के समय दूध भात तथा मिश्री का खाना बहुत ही फायदेमंद है अर्थात् इस दवा का यह पूरा पथ्य है, यदि यह न बन सके तो दूसरे दर्जे
१-क्योंकि हमने इस ग्रन्थ में शारीरिक विद्या के सार गृहस्थों को लाभ देनेवाले अच्छे प्रकार से लिख दिये हैं तथा प्रसंगवशात् वैद्यादि की परीक्षा आदि के भी अनेक विषय लिख दिये हैं, जब यह बात है तो इस ग्रन्थ को ध्यानपूर्वक पढ़कर साधारण जन भी कुशल और मूर्ख वैद्य की परीक्षा क्यों नहीं कर सकते हैं ।
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