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________________ चतुर्थ अध्याय । ५३७ पर इस का यह पथ्य है कि- सेंधानमक डाल कर तथा बीज निकाली हुई जयपुर की थोड़ी सी लाल मिर्च डाल कर बनाई हुई मूंग की दाल फुलके तथा भात को खाना चाहिये, किन्तु इन के सिवाय दूसरी खुराक को नहीं खाना चाहिये, तथा इस पथ्य ( परहेज) को गर्मी की प्रत्येक दवा के सेवन में समझना चाहिये । २- पोटास आयोडाइड १२ ग्रेन, लीक्वीड एक्स्ट्राक आफू सारसापरेला २ ड्राम, इन दोनों को मिलाकर डे भाग ( तीसरा हिस्सा ) दिन में तीन वार देना चाहिये । ३ - उसबा मगरबी दो तोले, पित्तपापड़ा छः मासे, काशनी छः मासे, चन्दन का चूरा ६ मासे तथा पुटास आयोडाइड छः ग्रेन, इन में से प्रथम चार औषधियों को आध पाव उबलते हुए गर्म पानी में एक घंटे तक चीनी वा काच के बर्तन में भिगोवें, फिर छान कर उस में पुटास आयोडाइड मिलावें और दिन में तीन वार सेवन करें, यह दवा एक दिन के लिये समझनी चाहिये तथा इस दवा का एक महीने तक सेवन करना चाहिये । ४ - मजीठ, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीम की छाल, गिलोय, कडु और बच, इन सब औषधों को एक एक तोला लेकर उस के दो भाग करने चाहिये तथा उस में से एक भाग का प्रतिदिन क्वाथ बना कर पीना चाहिये । ५- उपलसरी, जेठीमधु ( मधुयष्टि अर्थात् मौलेठी ), गिलोय और सोनामुखी ( सनाय ), इन सब को एक एक तोला लेकर तथा इन का क्वाथ बना कर प्रतिदिन पीना चाहिये, यदि इस के पीने से दस्त विशेष हों तो सोनामुखी को कम stoer चाहिये | ६ - उपदंश गजकेशरी अर्क- -यह अर्क यथा नाम तथा गुण है, अर्थात् यह अर्क उपदंश रोगपर पूर्ण ( पूरा ) फायदा करता है, जो लोग अनेक दवाइयों को खाकर निराश ( नाउम्मेद ) हो गये हों उन को चाहिये कि इस अर्क का अवश्य 'सेवन करें, क्योंकि उपदेश की सब व्याधियों को यह अर्क अवश्य मिटाता है । १-ऊपर लिखी हुई चारों औषधों को मिलाकर तैयार की हुई यह दवा हमारे औषधालय में सर्वदा उपस्थित रहती है तथा चार सप्ताह ( हफ्ते ) तक पीने योग्य उक्त दवा के दाम १० ) रुपये हैं, पोष्टेज ( डाकव्यय ) पृथक् है, जिन को आवश्यकता हो वे द्रव्य मेज कर अथवा बेल्यूपेबिल के द्वारा मंगा सकते हैं । २ यह अर्क शुद्ध वनस्पतियों से बना कर तैयार किया जाता है, जो मंगाना चाहें हमारे औषधालय से द्रव्य भेज कर अथवा व्ही. पी. द्वारा मँगा सकते हैं, इस के सेबन की विधि आदि का पत्र ( पर्चा ) दवा के साथ में भेजा जाता है, एक सप्ताह ( हफ्ते ) तक पीनेलायक दवा की शीशी का मूल्य ३ ) रुपये हैं, पोष्ट्रेज ( डाकव्यय ) पृथक् लगता है ॥ ३ - अर्थात् यह अर्क उपदंशरूपी गज ( हाथी ) के लिये केसरी ( सिंह ) के समान है ॥ ४- यह अर्क सहस्रों वार उपदंश के रोगियोंपर परीक्षा कर के अनुभवसिद्ध ठहराया गया है अर्थात् इस से अवश्य ही फायदा होता है ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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