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________________ चतुर्थ अध्याय । ४६९ इस ज्वर में-हरड़, नींव के पत्ते, सोंठ, सेंधानिमक और चित्रक, इनका चूर्ण कर बहुत दिनोंतक सेवन करना चाहिये, इस का सेवन करने से बुखार मिट जाता है। ___ अथवा-पटोल वा कडुई तुरई, मोथ, गिलोय, अडूसा, सोंठ, धनिया और चिरायता, इन का क्वाथ शहद डालकर पीना चाहिये। अथवा-चिरायता, निसोत, खस, वाला, पीपल, वायविडंग, सोंठ और कुटकी, इन सब औषधों का चूर्ण बना कर शहद में चाटना चाहिये। ___ अथवा–सोंठ, जीरा और हरड़, इनकी चटनी बनाकर भोजन के पहिले खानी चाहिये। __ अथवा-वत्सनाग दो भाग, जलाई हुई कौड़ी पांच भाग और काली मिर्च नौ भाग, इन को कूट कर तथा अदरख के रस में घोट कर मूंग के बराबर गोली बना लेनी चाहियें, तथा इन में से दो गोलियों को प्रातःकाल तथा सायंकाल ( दोनों समय) पानी से लेना चाहिये, ये गोलियां आमज्वर, खराब पानी के लगने से उत्पन्न ज्वर, अजीर्ण, अफरा, मलबन्ध, शूल, श्वास और कास आदि सब उपद्रवों में फायदा करती हैं। ज्वर में तृषा ( प्यास)-इस में चाँदी की गोली को मुँह में रखकर चूसना चाहिये। अथवा-आलू बुखार वा खजूर की गुठली को चूसना चाहिये। अथवा-शहद और पानी के कुरले करने चाहिये। अथवा-जहरी नारियल की गिरी, रुद्राक्ष, सेके (भूने) हुए लौंग, सोना, विना विंधे हुए मोती, मूगिया और (मिल सके तो) फालसे की जड़, इन सब को घिस कर सीप में रख छोड़ना चाहिये, तथा घण्टे २ भर पीछे जीभ को लगाना चाहिये, तत्पश्चात् प्रहरभर के बाद फिर घिस कर रख छोड़ना चाहिये और उसी प्रकार लगाना चाहिये, इस से पानी झरे तथा मोती झरे की प्यास, त्रिदोष की प्यास, कांटे, जीभ का कालापन और वमन (उलटी) आदि कष्टसाध्य भी रोग मिट जाते हैं, तथा यह औषध रोगी को खुराक के समान सहारा और ताकत ज्वर में हिक्का (हिचकी)-यदि ज्वर में हिचकी होती हो तो सेंधेनिमक को जल में बारीक पीस कर नस्य देना चाहिये। १-इस के सेवन से घोर तृषा भी शीघ्र ही शान्त हो जाती है, इस में जल बिलकुल ठंढ़ा लेना चाहिये ॥ २-जम्भीरी, विजौरा, अनारदाना, बेर और चूका, इन को पीसकर मुख में लेप करने से भी प्यास मिट जाती है, अथवा-शहद, बड़ (बरगद) की कोंपल और खील (भूने हुए धान अर्थात् तुषसहित चाँवल), इन सब को पीस कर मुख में इन का कवल रखना चाहिये, यह भी तृषा (प्यास) की निवृत्ति के लिये अच्छा प्रयोग है ॥ ४० ज० सं० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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