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________________ ४७० जैनसम्प्रदायशिक्षा। अथवा-सोंठ और खांडकी नस्य देना चाहिये। अथवा-हींगकी धूनी देना चाहिये। अथवा-निर्धूम अंगार पर हींग काली मिर्च तथा उड़द को अथवा घोड़े की सूखी लीद को जला कर उस की धुआँ को सूंघना चाहिये। अथवा--पीपल की सूखी छाल को जला कर पानी में बुझाना चाहिये, फिर उसी पानी को छान कर पीना चाहिये। अथवा-राई की आधे तोले बुकनी को आधसेर पानी में मिलाकर थोड़ीदेर तक रख छोड़ना चाहिये, फिर नितरे हुए पानी को लेकर आधी २ छटाँक पानी को दो वा तीन घण्टे के अन्तर से पीना चाहिये । ज्वर में श्वास-इस में दोनों भूरीगंणी, धमासा, कडुई तोरई अथवा पटोल, काकड़ासिंगी, भारंगी, कुटकी, कचूर और इन्द्रयव, इन की उकाली बना कर पीनी चाहिये। ___ अथवा-छोटीपीपल, कायफल और काकड़ासिंगी, इन तीनों का चूर्ण शहद में चाटना चाहिये। ज्वर में मूर्छा-इस में अदरख का रस सुँघाना चाहिये। अथवा-शहद, सेंधानिमक, मैनशिल और काली मिर्च, इन को महीन पीस कर उस का आँख में अञ्जन करना चाहिये । अथवा-ठंढे पानी के छींटे आंख पर लगाने चाहिये। अथवा-सुगन्धित धूप देनी चाहिये तथा पंखे की हवा लेनी चाहिये। ज्वर में अरुचि-इस में अदरख के रस को कुछ गर्म कर तथा उस में सेंधानिमक डाल कर थोड़ासा चाटना चाहिये। ___ अथवा-विजौरे के फल के अन्दरकी कलियां और सेंधानिमक, इन को मिला कर मुंह में रखना चाहिये। स्वर में वमन-इस में गिलोय के क्वाथ को ठंढा कर तथा उस में मिश्री और शहद डाल कर उसे पीना चाहिये। १-दोनों भूरीगणी अर्थात् छोटी कटेरी और बड़ी कटेरी ॥ २-यह दशांग काथ सन्निपात ,को भी दूर करता है ॥ ३-ज्जर में श्वास होने के समय द्वात्रिंशत्वाथ ( ३२ पदार्थों का काढ़ा) भी बहुत लाभदायक है, उस का वर्णन भावप्रकाश आदि ग्रन्थों में देख लेना चाहिये, यहां विस्तार के भय से उसे नहीं लिखा है ॥ ४-इन चारों चीजों को जल में बारीक पीस लेना चाहिये ।। ५-ज्वरदशा में मूर्छा होने के समय कुछ शीतल और मन को आराम देनेवाले उपचार करने चाहिये, जैसे-सुगन्धित अगर आदि की धूनी देना, सुगन्धित फूलों की माला का धारण करना, नरम ताल (ताड ) के पंखों की हवा करना तथा बहुत कोमल केले के पत्तों को शरीर से लगाना इत्यादि ॥ ६-किन्हीं आचार्यों का कथन है कि-विजौरे की केशर ( अन्दर की कलियां), घी और सेंधानिमक का, अथवा आँवले, दाख और मिश्री का कल्क मुख में रखना चाहिये॥ ७-किन्हीं आचार्यों की सम्मति केवल शहद डाल कर पीने की है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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