SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ जैनसम्प्रदायशिक्षा | ४- दो भाग गुड़ और एक भाग छोटी पीपल का चूर्ण, दोनों को मिला कर इस की गोली बना कर खाने से अजीर्ण, अरुचि, अग्निमन्दता, खांसी, श्वास, पाण्डु तथा कृमि रोग सहित जीर्णज्वर मिट जाता है । ५- -छोटी पीपल को शहद में चाटने से, अथवा अपनी शक्ति और प्रकृति के अनुसार दो से लेकर सात पर्यन्त छोटी पीपलों को रात को जल को जल में वा दूध में भिगा कर खाने से, अथवा दूध में उकाल कर पीने से, अथवा पीपलों को पीस कर गोली बना कर खाने से और गोली पर गर्म कर ठंढा किया हुआ दूध पीने से अर्थात् प्रतिदिन क्रम २ से बढ़ाकर इस का सेवन करने से जीर्णज्वर आदि अनेक रोग मिट जाते हैं । ६ - आमलक्यादि चूर्ण-आँवला, चित्रक, हरड़, पीपल और सेंधा निमक, इन का चूर्ण बनाकर सेवन करना चाहिये, इस चूर्ण से बुखार, कफ तथा अरुचि का नाश हो जाता है, दस्त साफ आता है तथा अग्नि प्रदीप्त होती है । ७- स्वर्णवसन्तमालिनी और चौंसठपहरी पीपले - ये दोनों पदार्थ जीर्णज्वर के लिये अक्सीर दवा हैं । ज्वर में उत्पन्न हुए दूसरे उपद्रवों की चिकित्सा । ज्वर में कास ( खांसी ) - इस में कायफल, मोथ, भाड़ंगी, धनियां, चिरायता, पित्तपापड़ा, वच, हरड़, काकड़ासिंगी, देवदारु और सोंठ, इन ११ चीजों की उकाली बना कर लेनी चाहिये, इस के लेने से खांसी तथा कफ सहित बुखार चला जाता है । अथवा पीपल, पीपरामूल, इन्द्रयव, पित्तपापड़ा और सोंठ, इन ओषधियों के चूर्ण को शहद में चाटने से फायदा होता है । ज्वर में अतीसार - इस में लंघन करना चाहिये, क्योंकि इस में लंघन पथ्य है । • अथवा - सोंठ, कुड़ाछाल, मोथ, गिलोय और अतीस की कली, इन की उकाली लेनी चाहिये । अथवा - काली पाठ, इन्द्रयव, पित्तपापड़ा, मोथ, सोंठ और चिरायता, इनकी उकाली लेनी चाहिये । दुर्जलज्वर --- यह ज्वर खराब तथा मैले पानी के पीने से, अथवा शिखरगिरि, बीनाथ, आसाम और अड़ंग आदिस्थानों के पानी के लगने से होता है । १- ये दोनों पदार्थ शास्त्रोक्त विधि से तैयार किये हुए हमारे " मारवाड़सुधावर्षणसत्यौषधालय” में सर्वदा तैयार रहते हैं, हमारे यहां का औषधसूचीपत्र मंगा कर देखिये || २-ज्वर में अतीसार होने पर लंघन के सिवाय दूसरी ओषधि नहीं है अर्थात् लंघन ही विशेष फायदा करता है, क्योंकि-लंघन बढ़े हुए दोषों को शान्त कर देता है तथा उन का पाचन भी करता है, इस लिये ज्वर में अतीसार होने पर बलवान् रोगी को तो अवश्य ही आवश्यकता के अनुसार लंघन कराने चाहिये, हां यदि रोगी निर्बल हो तो दूसरी बात है ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy