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________________ प्रथम अध्याय। २३ ४-वाक्य में जिस विशेष्यका जो विशेषण हो उस विशेषण को उसी विशेष्य से पहिले लाना चाहिये, ऐसी रचना से वाक्य का अर्थ शीघ्र ही जान लिया जाता है, जैसे-निर्दयी सिंह ने अपनी पैनी दाड़ों से इस दीन हरिण को चाब डाला, इस वाक्य में सब विशेषण यथास्थान पर हैं, इस लिये वाक्यार्थ शीष्ट ही जान लिया जाता है। २-यदि विशेषण अपने विशेष्य के पूर्व न रक्खे जाय तो दूरान्वय के कारण अर्थ समझने में कठिनता पड़ती है, जैसे-बड़े बैठा हुआ एक लड़का छोटा घोड़े पर चला जाता है । इस वाक्य का अर्थ विना सोचे नहीं जाना जाता, परन्तु इस वाक्य में यदि अपने २ विशेष्य के साथ विशेषण को मिला दें-तो शीघ्र ही अर्थ समझ में आ जायगा, जैसे एक छोटा लड़का बड़े घोड़े पर बैठा चला जाना है, यद्यपि ऐसे वाक्य अशुद्ध नहीं माने जाते हैं, किन्तु क्लिष्ट माने जा हैं । 20-जब वाक्य में कर्ता और क्रिया दो ही हों तो कर्ता को उद्देश्य और क्रिया को विधेय कहते हैं। 11-जिस के विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं और जो कहा जावे से विधेय कहते हैं, जैसे-बैल चलता है, यहां बैल उद्देश्य और चलता है यहां ग्धेय है ॥ १२- द्देश्य को विशेषण के द्वारा और विधेय को क्रियाविशेषण के द्वारा बढ़ा सकते हैं, जैसे अच्छा लड़का शीघ्र पढ़ता है ॥ ३-र दि कर्ता को कह कर उसका विशेषण क्रिया के पूर्व रहे तो कर्ता को उद्देश्य और विशेपणसहित क्रिया को विधेय कहेंगे, जैसे-कपड़ा मैला है, यहां कपड़ा उद्देश्य और मैला है विधेय है ॥ ५४-यदि एक क्रिया के दो कर्ता हों और वे एक दूसरे के विशेष्य विशेषण न हो कें तो पहिला कर्ता उद्देश्य और दूसरा कर्ता क्रियासहित विधेय माना राता है, जैसे—यह मनुष्य पशु है, यहां 'यह मनुष्य' उद्देश्य और 'पशु ' विधेय जानो ॥ १५-जो शब्द कर्ता से सम्बन्ध रखता हो उसे कर्ता के निकट और जो क्रिया से सम्बन्ध रखता हो उसे क्रिया के निकट रखना चाहिये, जैसे-मेरा रट्ट जंगल में अच्छीतरह फिरता है, इत्यादि । १६-विशेषण संज्ञा के पूर्व और क्रियाविशेषण क्रिया के पूर्व रहता है, जैसे-अच्छा लड़का शीघ्र पढ़ता है ॥ १७-पूर्वकालिका क्रिया उसी क्रिया के निकट रखनी चाहिये जिससे वाक्य पूर्ण हो, जसे-लड़का रोटी खाकर जीता है ॥ १८-वाक्य में प्रश्नवाचक सर्वनाम उसी जगह रखना चाहिये जहां मुख्यतापूर्वक पक्ष हो, जैसे-यह कौन मनुष्य है जिसने मेरा भला किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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