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________________ २४ जैनसम्प्रदायशिक्षा | १९- यदि एक ही क्रिया के जुदे २ लिंग के अनेक कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन हो जाती है, तथा उस का लिंग अन्तिम कर्ता के लिंग के अनुसार रहेगा, जैसेबकरियां, घोड़े और बिल्ली जाती हैं ॥ २०- यदि एक ही क्रिया के अनेक कर्ता लिंग और वचन में एक से न हों परन्तु उनके समुदाय से एकवचन समझा जाय तो क्रिया भी एकवचनान्त होगी, और यदि बहुवचन समझा जाय तो क्रिया भी बहुवचनान्त होगी, जैसे- मेरा न माल और रुपये पैसे आज मिलेंगे। मेरे घोड़े बैल ऊंट और बिल्ली वो गई ॥ २१- आदर के लिये क्रिया में बहुवचन होता है, चाहें आदरसूचक शब्द कर्ता के साथ हो वा न हो, जैसे- राजाजी आये हैं, पिताजी गये हैं, आप वहां जावेंगे, इत्यादि ॥ २२- यदि एक क्रिया के बहुत कर्म हों और उन के बीच में विभाजक शब्द रहे तो क्रिया एकवचनान्त रहेगी, जैसे-- मेरा भाई न रोटी, न दाल, न भात, खावेगा। २३- यदि एक क्रिया के उत्तम, मध्यम और अन्य पुरुष कर्ता हों तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार और यदि मध्यम, तथा अन्य पुरुष हों तो मध्यम पुरुष के अनुसार होगी, जैसे—तुम, वह और मैं चलूंगा । तुम और वह जाओगे ॥ २४ - वाक्य में कभी २ विशेषण भी क्रियाविशेषण हो कर आता है, जिसे-घोड़ा अच्छा दौड़ता है, इत्यादि ॥ २५- वाक्य में कभी २ कर्ता, कर्म तथा क्रिया गुप्त भी रहते है, जैसे— खेलता है, दे दिया, घर का बाग ॥ २६ - सामान्य भूत, पूर्णभूत, आसन्नभूत और सन्दिग्धभूत, इन चार कालों में सकर्मक क्रिया के आगे 'ने' चिन्ह रहता है, परन्तु अपूर्णभूत और हेतुहेतुमद्भूत में नहीं रहता है, जैसे—मैं ने दिया, उस ने खाया था, लड़के ने लिया है, भाई ने दिया होगा, माता खाती थी, इत्यादि ॥ २७- बकना, बोलना, भूलना, जनना, जाना, ले जाना, खा जाना, इन सान क्रियाओं के किसी भी काल में कर्ता के आगे 'ने' नहीं आता है ॥ २८ - जहां उद्देश्य विरुद्ध हो वहां वाक्य असंभव समझना चाहिये, जैसे—आग से सींचते हैं, पानी से जलाते हैं, इत्यादि ॥ यह प्रथमाध्याय का वाक्यविचार नामक पांचवां प्रकरण समाप्त हुआ | इति श्रीजैन श्वेताम्बर धर्मोपदेशक, यतिप्राणाचार्य, विवेकलब्धिशिष्य, शील सौभाग्य - निर्मितः - जैनसम्प्रदायशिक्षायाः प्रथमोऽध्यायः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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