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________________ १८२ जैनसम्प्रदायशिक्षा | २- नस्य देना - जब शरीर भारी हो अथवा कई रोगों में पसीना लाकर शरीर हलका करने की अवश्यकता हो तो गर्म पानी की नस्य अथवा भाफ के लेने से शरीर में पसीना भाकर शरीर हलका हो जाता है, कई वार ऐसा भी होता है। कि-पीने की दवाओं से पसीना नहीं आता है उस समय यही भाफ पसीना लाती है अर्थात् इस भाफ के लेने शीघ्रही पसीना आ जाता है और ज्वर आदि रोग शान्त पड़जाते हैं, इसी प्रकार शर्दी लगने के कारण मस्तक तथा छाती आड़े में दर्द होनेपर भी यह नस्य लेना लाभदायक है । ३- पिचकारी लगाना कठिन बद्धकोष्ठ में तथा जीर्ण दर्द आदि में जब किसी दवा से भी दस्त न आता हो तब गर्म पानी की पिचकारी लगाना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से दस्त आकर मलशुद्धि हो कर कोठा साफ हो जाता है, पिचकारी लगाने में यदि विशेष आवश्यकता हो तो गर्म पानी में एरंड का तेल आदि कोई दूसरा रेचक पदार्थ भी डाल कर पिचकारी लगाना चाहिये | ४-कुरला करना - मुख के छाले तथा दाँत की पीड़ा आदि मुख के रोगों में और दाँतों के निकलवाने के पीछे होनेवाले दर्द के समय में गर्म पानी के कुरले करने से बहुत फायदा होता है । ५- पानी में बैठना - हिचकी, धनुर्वात ( मनुष्य को कमान के समान टेढ़ा करनेवाला वातजन्य एक रोग ) और मूत्रकृच्छ्र आदि रोगों में गर्म पानी में बैठने से बहुत ही फायदा होता है. गर्म पानी में बैठने की रीति यह है कि एक बड़े बासन में सह्य ( जितना सहन हो सके उतना ) गर्म पानी भर कर उस में कमर तक बैठना चाहिये परन्तु यह क्रिया मकान के भीतर होनी चाहिये, क्योंकि बाहर खुली हवा में इस क्रिया के करने से बहुत हानि होती है । त्रियों के आर्त्तव सम्बन्धी रोगों में पीड़ा होकर ऋतुधर्म का आना आदि रखने से बहुत फायदा होता है । अर्थात् ऋतुधर्म का बन्द हो जाना अथवा रोगों में घुटनोंतक पैरों को गर्म पनी में यह चतुर्थ अध्याय का जलवर्णन नामक तृतीय प्रकरण समाप्त हुआ ॥ १ - जो लोग खुले स्थान में गर्म पानी से स्नान करते हैं अथवा गर्म पानी में ठंढा पानी मिलाकर उस पानी से खान करते हैं इस से बहुत हानि होती है ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat . www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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