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________________ दूसरा प्रकरण । ( व्याकरण विषयक ) -- इस में कातन्त्र व्याकरण की प्रथम सन्धि दिखलाई गई है:संख्या शुद्ध उच्चारण । अशुद्ध उच्चारण । १ सिद्धो वर्णसमासीद्धो वर्णा समाम नायः ॥ नाया || 7 अर्थ विवरण | वर्णसमाम्नाय अर्थात् वसमुदाय स्वयंसिद्ध है अर्थात् साधित नहीं है ॥ २ तत्र चतुर्दशादौ त्रै त्रै चतुरक दश्या दउं उनवर्णों में पहिले चौदह स्वर हैं ॥ स्वराः ॥ सवारा ॥ ३ दश समानाः ॥ ५ पूर्वी हस्वः ॥ ६ परो दीर्घः ॥ ७] स्वरोsवर्णवर्जो प्रथम अध्याय । ४ तेषां द्वौ द्वावन्यो- ते खाउ दुधवा वर्णों सवर्णौ ॥ तसी सवर्णो ॥ नामी ॥ ८ एकारादीनि सन्ध्य क्षराणि ॥ ९ कादीनि व्यञ्जनानि ॥ १० ते वर्गाः पञ्च पक्ष ॥ दशे समाना ॥ पुर्वो हंस्या || पारो दीरवा ॥ सारो वर्णा विन ज्यो ना मी ॥ इकारादीनी संधखराणी ॥ कदेन हेतुविण ज्योनामी ॥ ते वरगा पंचोपचा ॥ उनमें से पहिले दश वर्णों की समान संज्ञा है ॥ उन समानसंज्ञक वर्णों में दो दो वर्ण परस्पर सवर्णी माने जाते हैं ॥ उन द्विवर्णों में से पूर्व २ वर्ण हस्व कहाते हैं ॥ उन्हीं द्विकों में से पिछले वर्ण दीर्घ कहाते हैं ॥ भवर्ण को छोड़ कर शेष स्वर नामी कहाते हैं ॥ एकारादि संध्यक्षर वर्ण हैं ककार आदि व्यञ्जन वर्ण हैं ॥ वेही ककारादिवर्ण ५ मिलकर वर्ग कहलाते हैं और वर्ग पांच हैं विघानाउं प्रथम दुई वर्गोंके पहिले और दूसरे था ॥ ११ वर्गाणां प्रथमद्वि तीयौ ॥ १२ शषसाश्वघोषाः ॥ संखसहेचिया ॥ घोखाघोख पतोरणी ॥ १३ घोषवन्तोऽन्ये ॥ १. अकार से लेकर हकारपर्यन्त ॥ २. अ से लेकर औ पर्यन्त ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat वर्ण ॥ तथा श ष स ये अघोष हैं। दूसरे वर्ण घोषवान् हैं ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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