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________________ चतुर्थ अध्याय । १६३ आदर्श हमेशा फेफड़े में लेता है, श्वासोच्छ्रास के द्वारा ग्रहण की जाती हुई हवा में काजिक एसिड ग्यॅस के ( हानिकारक पदार्थ के ) हज़ार भाग साफ हवा में चार से दश तक भाग रहते हैं, परन्तु जो हवा शरीर से बाहर निकलती है उस के हजारों में कार्बोनिक एसिड ग्स के ४० भाग हैं अर्थात् ढाई हज़ार भागों में सौगुण भाग है, इस से सिद्ध हुआ कि - अपने चारों तरफ की हवा अपने ही बिगड़ती है, अब देखो ! एक तरफ तो जहरीली हवा को वनस्पति चूस लेती है और दूसरी तरफ वातावरण की ताज़ी हवा उस हवा को खींच कर ले जाती है, परन्तु मकान में हवा के आने जाने का यदि मार्ग न हो तो स्वभाव से ही अनुकूल भी समवाय प्रतिकूल ( उलटे ) हो जाते हैं, इस लिये प्रत्येक आदमी को ७ से १० फीट चौरस स्थान की अथवा खन की आवश्यकता है, यदि उतने ही स्थान में एक से अधिक आदमी बैठें या सोवें तो उस स्थान की हवा य विगड़ जायेगी । अब यह भी जान लेना आवश्यक ( ज़रूरी ) है कि हवा के गमनागमन पर स्थान विस्तार का कितना आधार है, देखो ! यदि हवा का अच्छे प्रकार से गमनागमन ( आना जाना ) हो तो संकीर्ण ( सँकड़े ) स्थान में भी अधिक मनुष्य भी सुख से रह सकते हैं, परन्तु यदि हवा के आने जाने का पूरा खुलासा मार्ग हो तो बड़े मकान तथा खासे खण्ड में भी रहनेवाले मनुष्यों को आवइकत के अनुसार सुखकारक हवा नहीं मिल सकती है । हवा के आवागमन का विशेष आधार घर की रचना और आस पास की हाके ऊपर निर्भर है, घर में खिड़की और दर्बाजे आदि काफी तौर पर भी रक्खे हुए हैं परन्तु यदि अपने घर के आस पास चारों तरफ दूसरे घर आगये हों तो घर में ताज़ी हवा और प्रकाश की रुकावट ( अटकाव ) होती है, इस लिये घर के सास से यदि हवा मिलने की पूरी अनुकूलता न हो तो घर के छप्परों में से ताजी जा सके ऐसी युक्ति करनी चाहिये । कुछ खराब मुख स्वच्छ होने पर भी दूसरों को उस ( अपने मुख ) बास किलनी हुई मालूम पड़ती है, वह वापस के द्वारा भीतर से बाहर को आनी खराब हवा की बास होती है, इसी खराब हवा से घर की हवा विगत है, तथा बहुत से मनुष्यों के इकट्ठे होने से जो घबड़ाहट होती है वह भी इसी हवा के कारण से हुआ करती है, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि उस जनसरह के द्वारा बिगड़ी हुई उस खराव हवा में से निकल कर जब बाहर खुली हवा में जाते हैं तब वह घबड़ाहट दूर हो कर मन प्रफुल्लित होता है, इस बात का अनुभव प्रत्येक मनुष्य ने किया होगा तथा कर भी सकता है । घर की हवा शुद्ध है अथवा बिगड़ी हुई है, इस का निश्चय करने के लिये सहज उपाय यही है कि - बाहर की शुद्ध खुली हुई हवा में से घर में जाने पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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