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________________ १६२ जैनसम्प्रदायशिक्षा | यद्यपि उत्तम मकानों का बनवाना आदि कार्य द्रव्य पात्रों से निभ सकता है, क्योंकि उत्तम मकानों के बनवाने में काफी द्रव्य की आवश्यकता होती है तथापि अपनी हैसियत और योग्यता के अनुसार तो यथाशक्य इस के लिये मनुष्यमात्र को प्रयत्न करना ही चाहिये, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि मलिन कचरे और सड़ती हुई चीजों से उड़ती हुई सलिन हवा से प्राणी एकदम नहीं मरता है परन्तु उसी दशा में यदि बहुत समय तक रहा जावे तो अवश्य मरण होगा । देखो ! यह तो निश्चित ही बात है कि बहुत से आदमी प्रायः रोग से ही नरते हैं, वह रोग क्यों होता है, इस बात का यदि पूरा २ निदान किया जावे तो अवश्य यही ज्ञात होगा कि बहुत से रोगों का मुख्य कारण खराब हवा ही है, जिस प्रकार से अति कठिन विष पेट में जाता है तो प्राणी शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होता है और अफीम आदि विष धीरे २ सेवन किये हुए भी कालान्तर में हानि हुँचाते हैं, इसी प्रकार से सदा सेवन की हुई थोड़ी २ खराब हवा का भी विष शरीर में प्रविष्ट होकर बड़ी हानि का कारण बन जाता है । यह भी जान लेना चाहिये कि बीमार आदमी के आस पास की हवा जल्दी विगडती है, इस लिये बीमार आदमी के पास अच्छे प्रकार से साफ हवा आने देना चाहिये, जिस प्रकार से शरीर के बाहर ताज़ी हवा की आवश्यकता है उसी प्रकार शरीर के भीतर भी ताज़ी हवा लेने की सदा आवश्यकता रहती है, जैसे बादली का अथवा कपड़े का तुकड़ा मुलायम हाथ से पकड़ा हुआ हो तो वह बहुत पानी को चूसता है तथा दबा कर पकड़ा हुआ हो तो वह टुकड़ा कम पानी को चूसता है, बस यही हाल भीतरी फेफड़े का है अर्थात् यदि फेफड़ा थोड़ा दबा हुआ हो तो उस में अधिक हवा प्रवेश करती है और उस से खून अच्छी तरह से साफ होता है, इस लिये लिखने पढ़ने और बैठने आदि सब कामों के करते समय फेफड़ा बहुत दब जावे इस प्रकार से टेढ़ा बांका होकर नहीं बैठना चाहिये, इस बात को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये, क्योंकि फेफड़े पर दबाव पजे से उस के भीतर अधिक हवा नहीं जा सकती है और अधिक हवा के न जाने से अनेक वीमारियां हो जाती हैं । प्रति मनुष्य हवा की आवश्यकता । प्रत्येक मनुष्य २४ घण्टे में सामान्य तया ४०० घन फीट हवा श्वासोच्छास में लेता है तथा शरीर के भीतर का हिसाब यह है कि - सात फीट लम्बी, सत फीट चौड़ी और सात फीट ऊंची एक कोठरी में जितनी हवा समा सके उतनी हा एक १- देखो ! जैनसूत्रों में यह कहा है कि - उपक्रम लग कर प्राणी की आयु टूटती है और उस उपक्रम) के मुख्यतया सौ भेद हैं, किन्तु निश्चय मृत्यु एक ही है, उस उपक्रम के भी ऐसे २ कारण हैं कि जिन को अपने लोग प्रत्यक्ष नहीं देख सकते और न जान सकते हैं ।। २ - यह नहीं समझना चाहिये कि अफीम आदि विष धीरे २ तथा थोड़ा २ सेवन करने से हानि नहीं करते हैं किन्तु वे भी समय पाकर कठिन विष के समान ही असर करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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