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________________ १३२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। जब वालक एक वर्ष का हो जावे और दाँत निकल आ तब उसे क्रम २ से चांवल; दाल; खिचड़ी; स्वच्छ दही और मलाई आदि देना चाहिये परन्तु अन्न के साथ गाय का दूध देने में कमी नहीं चूकना चाहिये क्योंकि दूध में पोषण के सब आवश्यक पदार्थ स्थित हैं, इस लिये दूध के देने से बालक तनदुरुस्त और दृढ़ बन्धनोंवाला होता है, यदि दूध के देने से शौच ठीक न आवे तो उसमें थोड़ा सा पानी मिला कर देना चाहिये इस से शौच ठीक होता रहेगा। ज्यों २ बालक की अवस्था बढ़ती जावे त्यों २ दूध की खुराक भी बढ़ाते जाना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से बालक का तेज; बन्धान और बल बढ़ता रहता है, जब बालक करीब दो वर्ष का हो जावे तब दूध में पानी का मिलाना बन्द कर देना चाहिये, बालक को जो दूध दिया जावे वह ताजा और स्वच्छ देव के लेना चाहिये, दूध में पानी वा अन्य कुछ पदार्थ मिला हुआ नहीं होना चाहिये, इस का पूरा खयाल रखना चाहिये क्योंकि खराब दूध बहुत हानि करता है, ज्यों २ बालक बड़ा होता जावे त्यों २ वह शाक तरकारी आदि ताजे पदार्टीको खावे इसका प्रयत्न करना चाहिये, धीरे २ शाक आदि पदार्थों में नमक और मसाला डालकर बालक को खिलाने चाहियें, कभी २ रुचि के अनुकूल कुछ मेवा भी देना चाहिये, बालक को कच्चे फल, कोयले और मिट्टी आदि हानिकारक पदार्थ नहीं खाने देना चाहिये, बालक को दिन भर में तीन वार खुराक देनी चाहिये परन्तु उसमें भी यह नियम रखना चाहिये कि प्रातःकाल में दृध और रोटी देना चाहिये, इस के बाद दूसरी वार चार घंटे के पीछे और तीसरी बार शामको आठ बजे के अन्दर २ कोई हलकी खुराक देनी चाहिये किन्तु इन नोन समयों के सिवाय यदि बालक बीच २ में खाना चाहे तो उस को नहीं खाने देना चाहिये, एक वार की खाई हुई खुराक जब पच जावे और मेदेको कुछ विश्रान्ति ( आराम ) मिल जावे तब दूसरी वार खुराक देनी चाहिये, भूख से अधिक खूब डॅट कर भी नहीं खाने देना चाहिये, क्योंकि जो बालक भूख से अधिक खूब इँट कर तथा वार वार खाता है तो वह खुराक ठीक रीति से हतम नहीं होती है और बालक रोगी हो जाता है, उसके हाथ पैर रस्सीके समान पतले और पेट मटकी के समान बड़ा हो जाता है, बालक को कभी २ अनार, द्राक्षा (दाख), सेव, बादाम, पिस्ते और केले आदि फलभी देते रहना चाहिये, उसको पानी स्वच्छ पीने को देना चाहिये, पीने के लिये प्रायः कुओं का पानी बहुत उत्तम होता है इसलिये वही पिलाना चाहिये, जिस पानी पर रजःकण (धूलके कण) तैरते हों अथवा जो अन्य बुरे पदार्थों से मिला हुआ हो वह पानी वालक को कभी नहीं पिलाना चाहिये, क्योंकि इस प्रकार का पानी बड़ी अवस्थावालों की अपेक्षा बालक को अधिक हानि पहुंचाता है, स्वच्छ जल हो तो भी उसे दो तीन वार छान कर पीने के लिये देना चाहिये, शीत ऋतु में शरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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