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________________ तृतीय अध्याय । १२३ सन्तति की ओर पूरा २ ध्यान दिया जाता था, इसी लिये यहां भी पूर्वसमय में बहुत से नामी पुरुष हो गये हैं, परन्तु वर्त्तमान में तो इस देश की दशा उक्त विषय में अत्यन्त शोचनीय है, क्योंकि अन्य देशों में तो कुछ न कुछ सुधार के उपाय सोचे और किये भी जा रहे हैं, परन्तु मारवाड़ तो इस समय में ऐसा हो रहा कि मानों नशा पीकर गाफिल होकर घोर निद्रा के वशीभूत हो रहा हो, इस वर्तमान में तो इस मारबाड़ देशको सन्तति का सुधार होना अति कठिन प्रतीत होता है, भविष्यत् के लिये तो सर्वज्ञ जान सकता है कि क्या होगा, अस्तु । मित्र पाठकगण ! वर्तमान में स्त्रियों में शिक्षा न होने से अत्यन्त हानि हो रही है अर्थात् गृहस्थसुख का नाश हो रहा है, विद्या और धर्म आदि सद्गुणों का प्रचार रुक पाने से देशकी दशा बिगड़ रही है तथा नियमानुसार बालकों का पालन पोषण और शिक्षा न होने से भविष्यत् में और भी बिगाड़ तथा हानि की पूरी भावना हो रही है, इस लिये आप लोगों का यह परम कर्तव्य है कि इस भयंकर हानि से बचने का पूरा प्रयत्न करें, जो अबतक हानि हो चुकी है उस के लिये तो कुछ भी प्रयत्न नहीं हो सकता है- इस लिये उस के लिये तो शोक करना भी व्यर्थ है, हां भविष्यत् में जो हानि की संभावना है उस हानि के लिये हम सब को प्रयत्न करना अति आवश्यक है और उस के लिये यदि आप सब चाहें तो प्रयत्न भी हो सकता है और वह प्रयत्न केवल यही है कि - हम सब अपनी स्त्रियों और पुत्रियों को वह शिक्षा देवें कि जिस से वे सन्तान रक्षाके नियमों को ठीक गति से समझ जावें, क्योंकि जब स्त्रियों को सन्तानरक्षा के नियमों का ज्ञान ठीक गति से हो जावेगा और वे बालकों की उन्हीं नियमों के अनुसार रक्षा और शिक्षा करेंगी तब अवश्य बालक नीरोग; सुखी; चतुर; बलिष्ठ; कदावर ( बड़े कद के; ) तेजस्वी; पराक्रमी; शूर वीर और दीर्घायु होंगे और ऐसे सन्तानों के होने से ही कुटुम्ब कुल; ग्राम और देशका उद्धार होकर कल्याण हो सकेगा इससे कुछ भी सन्देह नहीं है । - रक्षा के नियम यद्यपि अनेक वैद्यक आदि ग्रन्थों में बतलाये गये हैंजिन्हें बहुत से सज्जन जानते भी होंगे तथापि प्रसंगवश हम यहां पर सन्तानरक्षा के कुछ सामान्य नियमों का वर्णन करना आवश्यक समझते हैं उनमें से गर्भदशासम्बन्धी कुछ नियमों का तो संक्षेप से वर्णन पूर्व कर चुके हैं- अब सन्तान के उत्पतिसमय से लेकर कुछ आवश्यक नियमों का वर्णन स्त्रियों के ज्ञान के लिये किया जाता है: भांग के समान है, (जिसे पीकर मानो सब ही बावले बन रहे हैं ), अन्त में अब हमें यही कहना है कि यदि मारवाड़ी भाई ऐसे प्रकाश के समय में भी शीघ्र नहीं जागेंगे तो कालान्तर इस का परिणाम बहुत ही भयानक होगा, इस लिये मारवाड़ी भाइयों को अब भी मोते नहीं रहना चाहिये किन्तु शीघ्र ही उठ कर अपने को और अपने हृदय के टुकड़े प्यारे बालकों को सँभालना चाहिये क्योंकि यही उन के लिये श्रेयस्कर है । में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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