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________________ तृतीय अध्याय । १०५ ( कांच, शीसा ) देखना, इन सब बातों का भी स्त्री ऋतु प्रथम इस कार्य को तथा प्रसूता स्त्री का स्पर्श, विटला हुआ, ढेढ ( चांडाल ), नो ) सन्तति उत्पन्न कौआ और मुर्दा आदि का स्पर्श भी नहीं करना चाहिये, इस भी मरी तो ) दुर्बकरने से बहुत हानि होती है, इसलिये समझदार स्त्री को चाहिये हिये । समय ऊपर लिखी हुई बातों का अवश्य स्मरण रखे और उन्ह वर्त्ता करे | त्र ( खेत ) है ता है उसी रजोदर्शन के समय उचित वर्ताव न करने से ह को अति बार रजोदर्शन के समय उचित वर्त्ताव न करने से गर्भाशय में दर्द तथा उत्पन्न हो जाता है जिस से गर्भ रहने का सम्भव नहीं रहता है, कदाचित् रहभी जाता है तो प्रसूतिसमय में ( बच्चा उत्पन्न होने के समय ) अति भर रहता है, इस के सिवाय प्रायः यह भी देखा जाता है कि बहुत सी स्त्रियां पीले शरीर वाली तथा मुर्दार सी दीख पड़ती हैं, उस का मुख्य कारण ऋतुधर्म में दोष होना ही है, ऐसी स्त्रिया यदि कुछ भी परिश्रम का काम करती हैं तथा सीढ़ी पर चढ़ती हैं तो शीघ्रही हांफने लगती हैं तथा कभी २ उनकी आंखों के आगे अँधेरा छा जाता है - इसका हेतु यही है कि ऋतुधर्मके समय उचित वर्ताव न करने से उन के आन्तरिक निर्बलता उत्पन्न हो जाती है, इस लिये ऋतुधर्मके समय बहुत ही सँभलकर वर्ताव करना चाहिये । ऋतुधर्म के समय बहुत से समझदार हिन्दू, पारसी, मुसलमान तथा अंग्रेज आदि वर्गोंमें स्त्रियों को अलग रखने की रीति जो प्रचलित है - वह बहुतही उत्तम है क्योंकि उक्त दशा में स्त्रियों को अलग न रखने से गृहसम्बंधी कामकाज में सम्बंध होने से बहुत खराबी होती है, वर्तमानमें उक्त व्यवहारके ठीक रीति से न होने का कारण केवल मनुष्य जाति की लुब्धता तथा मनकी निर्बलता ही है, किन्तु उचित तो यही है कि - रजस्वला स्त्रियोंको अतिस्वच्छ, प्रकाशयुक्त, सूखे तथा निर्मल स्थान में गृह से पृथक् रखने का प्रबंध करना चाहिये किन्तु दुर्गन्धयुक्त तथा प्रकाशरहित स्थान में नहीं रखना चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ऋतुधर्म के समय स्त्रियों को चाहिये कि - मलीन कपड़े न पहरें, हाथ पैर सूखे और गर्म रक्खें, हवा में तथा भीगी हुई ज़मीन पर न चलें, खुराक अच्छी और ताजी खावें, मन को निर्मल रक्खें, ऋतुधर्म के तीन दिनों में पुरुष का मुख भी न देखें, स्नान करने की बहुत ही आवश्यकता पड़ें तो स्नान करें परन्तु जल में बैठकर स्नान न करें किन्तु एक जुड़े पात्र में गर्म जल भर के स्नान करें और ठंडी पवन न लगने पावे इसलिये शीघ्र ही कोई स्वच्छ वस्त्र अथवा ऊनी वस्त्र पहरलें परन्तु विशेष आवश्यकता के विना स्नान न करें । www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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