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________________ तृतीय अध्याय । हारा जो वश में करना है वही वास्तव में वश में करना कहाता है, क्योंकि दया या प्रेम से वश में करना ऐसा है जैसा कि स्रोत (सोत) को जहां से पानी आता है वहां बन्द कर देना, फिर देखिये कि-बल से वश में करना सिंह को जंजीरों से बांधने के तुल्य है, किन्तु दया वा प्रेम के द्वारा वश में होने पर सिंह भी हानि नहीं पहुंचाता है, उस की प्रकृति बदल जाती है और वह (सिंह) भेड़ के बच्चे के समान सीधा हो जाता है। इन सब बातों को विचार कर सुज्ञ पुरुष को उचित है कि गृहस्थाश्रम के कर्तव्य का उपदेश करनेवाले शास्त्रों के कथन के अनुसार सब व्यवहार करे और शास्त्रों का कथन यही है कि-जिस स्त्री के साथ विवाह हो उसी पर सन्तोष रक्खे और उस को अपने प्राणों के समान प्यारी समझे, यदि स्त्री में ज्ञान अथवा बुद्धि न्यून भी हो तो उस को विद्या, धर्म, नीति, पाकशास्त्र तथा व्यावहारिक ज्ञान को शिक्षा देकर श्रेष्ट बनावे, क्योंकि स्त्री को शिक्षा देना तथा उस को श्रेष्ट बनाना पति ही का कार्य है, देखो ! शास्त्रों में तथा इतिहासों में जिन २ उत्तम म्नी स्त्रियों की प्रशंसा सुनते हो वह सब उन के माता पिता और पति की शिक्षा का ही प्रताप है। इनिहासों के द्वारा यह भी सिद्ध है कि जिस कुटुम्ब में तथा जिस देश में त्रियों की स्थिति ठीक होती है वह कुटुम्ब और वह देश सब प्रकार से श्रेष्ट और सुग्व सम्पत्तिवाला होता है, और जहां स्त्रियों की स्थिति खराब होती है वह कुटुम्ब तथा वह देश सदा निकृष्ट दशा में ही रहता है, देखो : साईबीरिया, कामरकाटका, लाप्लांड, ग्रीनलांड, अफ्रिका और आस्ट्रेलिया आदि देशों की स्त्रियों की स्थिति बहुत हलकी है अर्थात् उक्त देशों में अनेक प्रकार के दुःख स्त्रियों को दिये जाते है, स्त्रियों को गुलाम के समान गिनकर उन से सब तरह के कठिन काम कराये ‘गाते हैं, गर्भवती जैसी कठिन स्थिति में उत्तम प्रकार से सम्भाल रखने के बदले पन्हें अपवित्र समझ कर घर तथा झोंपड़ी से बाहर निकाल देते हैं, जिस से ने चारी उसी कठिन दशा में शीत उष्ण आदि अनेक प्रकार के दुःखों की है, करती हैं तथा उन को पशु के समान गिनते हैं, इस लिये उन देशों नदि कोई प्रायः शोचनीय है, क्योंकि देखो वर्तमान के सुधरे हुए भी समा वचन से निवासी पशुवत् स्थिति में पड़े हुए अपना समय व्यतीत कर ज़रूरी) काम विरुद्ध इंग्लेंड, जर्मनी और फ्रांस आदि देशों में स्त्रियों के हो जाय तथापि उत्तम है अतः उन देशों की स्थिति भी श्रेष्ठ तथा ऊंचे दर्जेष्टि स्थिर करके एक की स्त्रियों को सब प्रकार का आदर सत्कार और मान खने की आवश्यकता का दर्जा बहुत ही उत्तम गिना जाता है, तथा वहां के देखती है, देवदर्शन स्त्रियोंके समान अन्धकाररूप गुप्त पड़दे में नहीं रहका वर्ताव होने से वे देश सब प्रकार की सम्पत्ति की थकावट को दूर करती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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