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________________ ९० जैनसम्प्रदायशिक्षा | लिये यह सिद्ध है कि स्त्रियों की स्थिति अच्छी रखने से सब का कल्याण होता है, किसी विद्वान् ने कहा भी है की - " वह पुरुष पशु है जो कि यह समझता है कि मैं स्त्री को अपनी इन्द्रियसेवा के लिये लाया हूं, किन्तु मनुष्य वह है जो कि यह समझता है कि मैं अपने सुख और दुःख में वास्ते स्त्री को लाया हूं" । सहारे के में लवण के समान है। लगता है, विचार कर देखने से मालूम होता है कि- स्त्री अन्न अर्थात् जैसे अन्न में लवण न डालने से वह स्वाद न देकर फीका इस प्रकार से गृहस्थाश्रम में स्त्री के विना कुछ भी स्वाद (आनन्द) नहीं है । प्राचीन काल में इस देश के सब आर्य जन ऊंचे, कुल ऊंचे स्वभाव, ऊंची वृत्ति और ऊंचे विचारों में निमग्न थे, जिन की श्रेष्ठता की बराबरी तो वर्तमान में सुधरे हुए जमाने में भी यूरूप आदि देश नहीं कर सकते हैं । पीछे से सुरू हुई गृह में मन्त्री का उस प्राचीन काल में इस देश में यहां की आर्य महिलाओं को किसी प्रकार का भी बन्धन नहीं था अर्थात् वे अपने पति के साथ सभा आदि सब स्थानों में जा सकती थीं, देशाटन में अपने पति के साथ रह सकती थीं, तात्पर्य यह है कि वर्तमान समय के अनुसार पड़ड़े में पड़ी रहने की रीति उस समय नहीं थी, यह कुत्सित रीति तो मुसलमानों का यहां अधिकार होने के है, प्राचीन काल में स्त्रियों का मान रखा जाता था, उन का पद ठीक रीति से गिना जाता था, उस समय में विवाह की भी प्रतिज्ञा तथा प्रण नहीं तोड़ा जा सकता था, क्योंकि विवाह की प्रतिज्ञा और उस का प्रण दूसरी वस्तुओं के कबाड़े के समान कबाड़ा नहीं है, यह तो प्राचीन पवित्र समय का वर्णन किया - अब वर्तमान समय का भी कुछ रहस्य सुनिये - वर्तमान में देखा जाता है कि बहुत से विवेकहीन पुरुष अपनी स्त्री के साथ कुछ बोल चाल ( कलह आदि ) हो जाने पर उस को तुच्छ करने के लिये दूसरी स्त्री के साथ सम्बन्ध बांधते हैं, परन्तु ऐसा करना उन के लिये बहुत ही लज्जा की बात है, योंकि यह काम तो केवल पशु के काम के समान है कि अनेकों के साथ इनर बांध कर पीछे छोड़ देना, किन्तु यह कार्य मनुष्यजाति के करने योग्य है और यदि मनुष्य भी पशु के समान ही वर्ताव करे तो मनुष्य और पशु में हैं, क्योंकिंग रहा? इसलिये सुज्ञ पुरुषों को केवल अपनी धर्मपत्नी के साथ ही कि- बहते हुए रखना चाहिये और उसी को सब प्रकारका सुख देना चाहिये, बहाव को रोक र व्यवहार उत्तम है और यही व्यवहार उन को प्राचीन सुखड़ापहिले की अपेक्षा वाला है । १-जैसा लिखा है कि-लोग अपने अधिकार के समय में यह अत्याचार करने लगे थे कि गजाला नोपसंहिताः ॥ १ ॥ अथा रूपवती देखते थे उस को पकड़ ले जा कर उस के साथ अनुचित अन्धकार का समय नहीं है, अब तो श्रीमती ब्रिटिश गवर्नमेंट कूटना आदि ) कहे हैं वे उन के लिय में सिंह और बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं अतः ऐसे मालायें ॥ १ ॥ २- पाठकगणों ने भी अन्धकार से बाहर निकालना चाहिये ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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