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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
(मूर्ख ), शूद्र ( नीच जाति का ) और स्त्री, ये चारों ताड़ने के ही अधिकारी हैं, अर्थात् ताड़ना देने से ही ठीक रहते हैं, सो यह उन लोगों का अत्यन्त भ्रम हैं, क्योंकि प्रथम तो यह वाक्य किसी आप्त पुरुष का कहा हुआ नहीं है इस लिये माननीय नहीं हो सकता है, दूसरे तमाम धर्मशास्त्रों और नीतिशास्त्रों की भी ऐसी सम्मति नहीं हैं कि - स्त्रियों को सदा मार कूट कर दबाये रखना चाहिये, किन्तु शास्त्रों की इस से विपरीत सम्मति तो सर्वत्र देखी जाती है कि स्त्रियों का अच्छे प्रकार से आदर सत्कार करके उन को अपने अनुकूल बनाना चाहिये, अत एव किन्हीं शास्त्रकारों ने यहां तक कथन किया है कि - "जो लोग ऐसा विचार करते हैं कि स्त्रियां सदैव घर के कूटने पीसने आदि कार्य में लगी रहें और पुरुष उन को ताड़ना कर दबाये रहें कि जिस से वे उद्धत न हो जावें और उन का चित्त चलायमान न होने पावे, सो यह उन लोगों की परम मूर्खता है, क्योंकि उक्त साधन स्त्रियों को वश में रखने के लिये ऐसे असमर्थ हैं जैसे कि- मदोन्मत्त हाथी को रोकने के लिये माला का बन्धन,” न केवल इतना ही किन्तु कई दूरदर्शी सुज्ञ विद्वानों का यह भी कथन है कि “ईष्यैव स्त्रियं परपुरुषासक्तां करोति" अर्थात् पुरुष का स्त्री के साथ जो ईर्ष्या ( द्रोह ) रखना है. वह ( ईर्ष्या ) ही स्त्री को कभी २ परपुरुषासक्ता ( दूसरे पुरुष पर आसक्त ) कर देती है, और यह बात युक्ति तथा प्रत्यक्ष प्रमाण से मानी भी जा सकती और इस के उदाहरण भी प्रायः देखे व सुने गये हैं, क्योंकि स्त्रीजाति प्रायः मूर्ख तो होती ही है, उस को अपने कर्तव्य का ज्ञान भी शिक्षा के न होने से नहीं होता है, ऐसी दशा में पति की ओरसे ताड़ना के होने से वह अपने पर परम आपत्ति आई हुई जान कर निराश्रय होकर यदि कुछ अनुचित कार्य कर लेवे तो इस में आश्चर्य ही क्या है ?
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फिर देखिये कि इस संसार में किसी को जीतने के या वश में करने के केवल दो उपाय ही होते हैं, एक तो बल के द्वारा, और दूसरा दया वा प्रेम के द्वारा,इन दोनों में से बल के द्वारा वश में करना नीतिशास्त्र आदि के बिलकुल विरुद्व है और समझदार पुरुष बल के द्वारा वश में करने को वश में करना नहीं मानते हैं, क्योंकि उन की सम्मति यह है कि -बल के द्वारा वश में करना ऐसा है जैसा कि- बहते हुए पानी की धारा में बांध बांधना, यह थोड़े काल तक ही पानी के बहाव को रोक सकता है परन्तु जब वह (बांध) टूटता है तब पानी की धारा पहिले की अपेक्षा और भी अधिक वेग से बहने लगती है, परन्तु दया वा प्रेम के
१ - जैसा लिखा है कि- कर्माण्यसुकुमाराणि, रक्षणार्थेऽवदन्मनुः ॥ तासां स्रज इत्रोद्दामगजालानोपसंहिताः ॥ १ ॥ अर्थात् स्त्रियों की रक्षा के लिये मनु ने जो कठोर कर्म (पीसना, कूटना आदि ) कहे हैं वे उन के लिये ऐसे हैं, जैसे कि उन्मत्त हाथी को बांधने के लिये फूलों की मालायें ॥ १ ॥ २- पाठकगणों ने भी इस के अनेक उदाहरण देखे वा सुने ही होंगे ॥
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