SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से शोधकर के जीमते हैं । खड़े होकर भोजन लेने की सम्मति शास्त्रों में मुनियों के लिये ही है। श्रावक अवस्था में खड़े होकर आहार लेना मुनि मार्ग का उपहास करना है । इसीलिये ग्यारह प्रतिमा धारो श्रावकों को चाहिये कि वह भोजन करे तब प्राण जाते भी खड़े भोजन न करें। एक हाथ ग्रास घर, एक हाथ में लेय । श्रावक के घर बैठकर, ऐलक असन करेय ।। यह कथन भी हाथ के ऊपर धर कर एक हाथ से बिना अंजुलि लगाये बैठकर शान्ति से भोजन करना कहता है । __इन लोगों को ग्यारह प्रतिमा रूप व्रत है और यह श्रावकोत्तम गृह त्यागी प्रारम्भ परिगृह रहित (लंगोटी छोड़कर) पूज्य पुरुष है इन्हें भी इच्छामि २कहकर शुद्ध भोजन दें । भोजन समय पधारो महाराज कहकर विनय युक्त होकर सम्मान पूर्वक भक्ति सहित आहार देवें। व्रती किनके यहां आहार नहीं करते जो नृत्य आदि गाकर जीविका करने वाला हो जैसे गन्धर्व लोग या तेल अर्क आदि बेचने वाले या नीच कर्म से आजीविका करने वाले हो, माली अर्थात पुष्प आदि वेचने वालें, नपुसक हो, वेश्या हो, दीन हो, कृपण हो, सूतक वाला, छोपा का काम करने वाला, मद्य पीने या बेचने वाले या संसर्गी हो प्रादि इनमें से कोई व्यक्ति हो उनके सम्बन्ध से यानी समाने आचरण करने वाले-ऐसों के यहां संयमी लोग भोजन नहीं करते । विधवा विजाति विवाह करने वाले, वर्ण शंकर, नीच कुल में उत्पन्न -२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034500
Book TitleDigambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJiyalal Jain
PublisherJiyalal Jain
Publication Year1965
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy