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________________ जल से भरा हुआ लोटा जो फल आदि से ढका हो छन्ना व माला लपेट अपने द्वार पर पात्र होरने के लिए णमोकार मंत्रका ध्यान करते खड़ा होना चाहिये । जब मुनि द्वार के सन्मुख आवे तो "हे स्वामिन ! अत्र तिष्ट-तिष्ट अन्न जल शुद्ध है।" ऐसा कहकर आदर पूर्वक अपने गृह में अतिथि को प्रवेश करावें। आगे आगे स्वयं चले पीछे पीछे अतिथि चलें इसको प्रतिग्रहण या पड़गाहन कहते हैं । पश्चात घर में पात्र को उच्च स्थान (पाटला, चौकी, कुर्सी आदि) पर कहे "स्वामिन विराजिये"स्वयं उक्त लोटा अन्य पाटला आदि पर रख देवे। बाद को, अयन्त्र रखा प्राशुक जल उससे अपने पैर शुद्ध करे । और जिस लोटे से मुनि को पड़गाहन करके लाये उस पानी से मुनि के पैर धोवे (अङ्ग पोंछे) बाद को अष्ट द्रव्यसे पूजन करे दायसे वांयें परिक्रमा देवे । परिक्रमा ३वार देना चाहिये । अष्टांग नमस्कार करे धोक देवें। बाद को हाथ जोड़कर कहे "मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, भोजन शुद्ध है भोजन शाला में प्रवेश कीजिये" इसी भाँति स्त्री अथवा पुरुष जो चौके में होवे वह भी कहे। इस प्रकार नवधा भक्ति एवं शुद्धि पूर्वक सर्व प्रकारके भोजन पदार्थ पृथक पृथक कटोरी में रखकर थाली में लेकर भोजन शाला में लगी मेज पर लगावे सन्मुख खड़ा होवे आहार देने से प्रथम हर वस्तु को बतला देवे कि अमुक अमुक वस्तु अमुक रीत्यानुसार त्यार की गई तथा इसमें अमुक अमुक द्रव्य सम्मिलित है । जिस द्रव्य को मुनि पृथक करने का संकेत करे उसे पृथक रख देवे जव मुनि हाथ से पीछी छोड़ देवे, और हस्ताञ्जलि बांध लेवें प्रथम प्राशुक जल देवें वाद को अन्न आदि के ग्रास बनाकर हाथमें देते जावें ।(विद्वानों का कथन है) कि अन्न का एक ग्रास देने के बाद जल का एक ग्रास देवें । ग्रास देते समय मुनि हस्तांजलि बन्द कर लेवें तो वह द्रव्य नहीं देवें। यदि कोई विशेष वस्तु है, तो उसका संकेत कर देवे यदि मुनि अंजलि खोल दे तो दे देवें अथवा विशेष आग्रह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034500
Book TitleDigambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJiyalal Jain
PublisherJiyalal Jain
Publication Year1965
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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