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द्विदल का जीभ के साथ सम्बन्ध होने पर उस जीव पैदा होते हैं। इसलिए त्रस हिंसा का पाप लगता है। प्रायुर्वेद्र के विद्वान प्राचार्यों ने कहा है कि यदि इस प्रकार के पदार्थों का सेवन किया जावे तो महान भयंकर रोगों की उत्पत्ति होती है।
वर्तनों की शुद्धि
कांसे का वर्तन अपनी जाति के सिवाय अन्य के काम में नहीं लाना चाहिये, पीतल के वर्तन इनको मद्य, मांस भक्षी आदि को नहीं देना चाहिये । घर में यदि रजस्वला स्त्री से सम्पर्क हो जाय तो अग्नि से गर्म कर लेना चाहिये, रांगा तथा लोहे के वर्तन- इनको कांसे के समान जानना। अन्य धातु के वर्तन पीतल के वर्तनों के समान जानने चाहिये।
मिट्टी के बर्तन-इन्हें चूल्हे पर चढ़ाने के बाद दुवारा काम में नहीं लावे तथा पानी भरने के वर्तनों को आठ पहर बाद सुखा लेना चाहिये।
कांच के वर्तन-मिट्टी के वर्तनों के समान जानना ।
पत्थर के वर्तन-इनको प्रयोग कर जल से धोकर सुखा लेना चाहिये तथा दूसरों को नहीं देना चाहिये । ___ काष्ट के वर्तन- इन्हें पत्थर के समान जानना। विशेष जिन वर्तनों पर कलई हो उन्हें टट्टी पेशाव के लिये नहीं ले जाना चाहिये। ___ साधुओं को आहार देने वाले चौके में स्टील के तथा लोहे के वर्तन [तवा, करछली, फूकनी, चिमटा, सड़सी आदि को छोड़कर नहीं होना चाहिये । यद्यपि स्टील का वर्तन विशेष
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