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________________ [ प्राक्कथन दृष्ट्या वाञ्छनीय है । क्योंकि कथित युद्धमें त्र्यम्बकरावके अतिरिक्त पीलाजीराव गायकवाड़, कन्थाजी और रघुनाथराव कदम्ब, सयाजीराव भाराड़े और आनन्दराव पवार तथा प्राय: दूसरे प्रसिद्ध सैनिक शामिल थे । इस हेतु उसने अपनी विजयको ईश्वर दत्त माना और मरहठोंके। किसी प्रकार मिलानेको युक्ति संगत मान उसे चरितार्थ करनेमें प्रवृत्त हुआ । उसने विक्रम संवत् १७८७ में मृत सेनापति त्र्यम्बकरावके बालक पुत्र आनंदरावको मराठोंका सेनापति बनाया। नवीन बालक सेनापतिके पैतृक अधिकारके स्वीकार कर उसकी माताको अभिभावक और पीलाजीराव गायकवाड़को प्रतिनिधि नियुक्त किया । इसके अतिरिक्त पीलाजीको नवीन उपाधि सेना खासखेल प्रदान की । और सेनापतिका कर्म करने का आदेश दिया । एवं घोषणा की कि आजसे आगेको कोईभी मरहठा सेनापति किसी दूसरेके अधिकारमें गुजरात, मालवा आदि किसी देशमें हस्तक्षेप नहीं करेगा । अन्ततोगत्वा बालक सेनापतिके प्रतिनिधि रूपमें पीलाजीसे गुजरातकी चौथका आधा भाग सतारा के राजा शाहुकी सेवा में पेशवा के द्वारा भेजना स्वीकृत कराया। पिलाजी गायकवाड़का - आनन्दराव दभाड़ेका - अभिभावक बनाया जाना गायकवाड़ वंशके गुजरातमें अभ्युदयका श्रीगणेश है। आगे चलकर पद पद पर हमें गायकवाड़ोंका उल्लेख करना पड़ेगा, अतः गायकवाड़ वंशावलीको उद्धृत करते हैं । गायकवाड़ वंशावली. १ दामाजी ( प्रथम ) २ पीलाजी I मालोजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat नन्दाजी रोजी भिंगोजी । मोमाजी "कान्होजी . Į गुंजोजी केदारजी www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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