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________________ चौतुभव चंद्रिका यशवंत ३ दामाजी खण्डेराव आनन्द प्रताप सयाजी कालुजी जयसिंह मल्हारराव ६ ७ गोविन्द सयाजी' फतेसिंह मामाजी मुरारः रामराव जयसिंह कालुजी गवाजी ० सयाजी मानन्दराव भिकाजी | १३ मल्हारराव गणपतराव खण्डेराव काशीराव १४ सयाजीराव (वर्तमान) गोपालराव (गही बैठे) बाजीरावने इस प्रकार प्रबन्ध कर यद्यपि प्रत्येक मरहठा सैनिकको अपने अधिकार पर सुर क्षित कर दिया । किन्तु न तो उसका अपना मम और न मरहठा सैनिकोंका मन शुद्ध हुआ। इसका परिचय आगे मिलेगा । खैर इस प्रकार पीलाजी प्रानन्दरावका प्रतिनिधि बन कर सोनगढको अपना केन्द्र बना गुजरातका एक प्रकारसे सर्वे सर्वा बन गया। परन्तु उसे सुख और शान्ति नहीं मिली। क्योंकि मुगल बादशाहने अपने सूबा सरबुलन्दकी शर्तोंकों नहीं माना और मरहठोंको गुजरातसे निकाल बाहर करनेके लिये जोधपुरके महाराजा अभयसिंहको सूबा बनाकर भेजा। अभयसिंह दिल्हीसे चलकर अहमदाबाद आये और सरबुलन्दके मनुष्योंके हाथसे उसे बलपूर्वक छीन लिया। एवं बरोदाको हस्तगत कर महमद बहादुरखां बाबीको विजित प्रदेशका अधिपति बनाया। अभयसिंहके भानेके समय पीलाजी डाकोरकी यात्राको गया था। सम्वाद पाकर वह छीने प्रदेशको पुनः स्वाधीन करनेकी धुनमें लगा। परन्तु अभयसिंहने युद्ध में प्रवृत्त होनेके स्थानमें कौशलसे काम लेना चाहा । और पीलाजीसे मैत्रीकी बातें करने लगा। और इस संबंधमें दोनों एक दूसरेसे मिलने लगे। अन्तमें उसके संकेतानुसार पीलाजी मारा गया। अर्थात् जब एक दिन मिलनेके बाद जानेके लिये उठातो एक राजपूत सैनिकने कुछ संवाद देने के बहानेसे उसके कानमें कुछ बातचीत करनेका संकेत किया, और जब उसने उसके प्रति अपना कान झुकाया, तो बातें करनेके स्थानमें अपना कटार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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