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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] ६४ चौथ सहायताके उपलक्षमें देना स्वीकार किया । इधर सुजातखांके भाई रुस्तम अलीने पीलाजीसे चौथ के शर्तपर सहायताकी प्रार्थना की। पीलाजी रुस्तमको मदद देना स्वीकार कर आगे बढ़ा और रुस्तम तथा पीलाजीकी सेना महीपार कर अड़ासके तरफ जा रही थी। अचानक हमीद ने आक्रमण किया । परन्तु हटाया गया । इसके अनन्तर रुस्तम और पीलाजी से मन मुटाव हो गया और पीलाजीने अचानक रुस्तमपर आक्रमण किया । रुस्तम वीरता से लड़ा परन्तु अन्तमें बंदी होनेके स्थानमें मरना अच्छा मान आत्मघात कर गया । रुस्तमके मरने पश्चात् पीला जीने हमीदखांसे अपने विश्वासघातके पुरस्कार में गुजरातकी चौथ मांगी। परन्तु कन्याजी कदम्बने विरोध किया । अतः महीसे उत्तरका कन्थाजीको और दक्षिणके चौथका अधिकार पीलाजीको मिला। पीलाजी सोनगढ़ और कन्थाजी खानदेश चले आये । हमीदको दण्ड देनेके लिये सरबुलन्दखां भेजा गया। जिसके आनेका संवाद पाकर हमीद भाग खड़ा हुआ । - इतनेमें कन्थाजी और पीलाजी उससे जा मिले। अन्तमें सबुलन्दको हारना पड़ा । इन दोनोंने खूबही ऊधम मचाया अन्तमें सरबुलन्दने बाजीराव पेशवासे सहायता की प्रार्थना की । और उसने सरबुलन्दसे चौथ स्वीकार कराकर अपने भाई चिमनाजीकी अध्यक्षता में सेना भेजी। चिमनाजीने सरबुलन्दसे अपने भाईकी शर्त स्वीकार कर कर उसे आश्वासन दिया की कोई भी मरहठा उसके इलाकेमें गड़बड़ नहीं मचायेगा । परन्तु त्र्यम्बकराव दभाड़े और अन्यान्य मरहठे पेशवाको गुजरात से निकाल बाहर करनेके विचार से मिल गये । उन्होंने पेशवा और भाड़े विग्रहको ब्राह्मण ब्राह्मणका रूप दिया। दभाड़े आदि यहां तक आगे बढ़े कि उन्होंने निजामउलमुल्क से मैत्री स्थापित की। और ३५००० सेनाके साथ पेशवा के विरोध में प्रवृत्त हुए। बाजीराव स्वयं इनको शिक्षा देनेके लिये गुजरात आया । परन्तु दुर्भाग्यसे नर्मदा उतरनेबाद सम्मिलित गायकवाड़ - दभाड़े सेनाके नायक पीलाजीरावके पुत्र दामाजीके हाथसे बाजीरावको पराभूत होना पड़ा । बाजीराव यद्यपि हारा, परन्तु हतोत्साह न हुआ । डभोई और वरदा मध्यवाले मीकू पुरा ग्रामके दूसरे युद्धमें सफलीभूत हुआ । त्र्यम्बकराव तथा पीलाजीका पुत्र सयाजी मारा गया। पिलाजी अपने दो पुत्रोंके साथ घायल होकर सोनगढ़ चला था । और बाजीराव विजयी होकर सतारा गया। परन्तु वह समझ गया कि ब्राह्मणेतर मरहठे सैनिकोंकी उपेक्षा करनेमें नतो वह समर्थ है, और न राजनैतिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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