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________________ ५६ [प्राक्कथन दो पुत्र थे। संभाजी जब वयस्क हुआ तो अत्यन्त दुराचारी निकला। उसके आचरणसे असंतुष्ट हो, जब शिवाजीने शासन किया तो वह विक्रम १७३४ में भाग कर एक मुगल सरदारके पास चला गया। परन्तु मुगलोंके व्यवहारसे संत्रस्त हो स्वदेश आ गया। किन्तु शिवाजीने उसे क्षमा न कर पन्हाला दुर्गमें कैद किया। इस घटनासे शिवाजीका हृदय अत्यन्त दुःखी रहने लगा, और विक्रम १७३६ में ५३ वर्षकी अवस्थामें उनकी मृत्यु हुई। और भारत उद्धार तथा हिन्दु साम्राज्यकी आशा उनके साथही चिताकी गोदमें चली गई। शिवाजीकी मृत्यु पश्चात् संभाजीके बंदी होनेका लाभ उठा उसकी विमाता सोयराबाईने अपने पुत्र राजारामको रायगढ़में गद्दीपर बैठाया और महाराष्ट्र सिंहासनकी जड़में गृह कलहका बीज वपन किया। परन्तु संभाजीको जब यह संवाद मिला तो किसी प्रकार पन्हालासे निकल अपने अनुचरोंको एकत्रित कर रायगढ़को हस्तगत किया। सोयराबाईको बंदी बना शिवाजीको विष देनेके अपराधमें मरवा डाला। और विक्रम १७३७ में गद्दीपर बैठा। एवं राजारामके साथिओंको बड़ीही निर्दयताके साथ यमराजके दरबारमें पहुंचाया। संभाजीको राजा बननेके लगभग एक वर्ष बाद बादशाह औरंगजेबका पुत्र अकबर जब अपने पिताकी कुटिल नीतिके कारण पराभूत हुआ तो राठौडवीर दुर्गादासकी प्रेरणासे संभाजीके शरणमें आया। मरहठोंने यद्यपि उसे शरण दिया, परन्तु अकबरको संतोषजनक लाभकी आशा नहीं दीखी। अकबरका संभाजीके पास जाने और मरहठोंका बुरहानपुर विजयका संवाद पाकर औरंगजेब स्वयं बुरहानपुर आकर संभाजीपर आक्रमणका संचालन करने लगा। मरहठोंके दुर्भाग्यसे संभाजीकी एक स्त्री और पुत्रको मुगलोंने बंदी बनाया। पुनश्च औरंगजेबने बीजापुर और गोलकुन्डाको विक्रम १७४३ में विजयकर अपनी समस्त सेना संभाजीके प्रतिकूल अग्रगामी की। विक्रम १७४३ में संभाजी अपने पुत्र शाहुके साथ बंदी हुआ और औरंगजेबने मुसलमान धर्म न स्वीकार करनेपर उसे मरवा डाला। एवं रायगढ़ विजयकर अनेक सरदार सामन्तों और राज्य परिवारके मनुष्योंका वध किया। परन्तु राजाराम सन्यासीके वेषमें भाग निकला। औरंगजेबने रायगढ़को स्वाधीन किया। संभाजीकी मृत्यु और उसके पुत्र शाहु (शिवाजी ) के बंदी होनेके कारण संभाजीका छोटा वैमात्रिक भाई राजाराम नाम मात्रका राजा बना; क्योंकि उस समय याप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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