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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] ५६ महाराष्ट्र की परंपरा बताती है कि मेवाड़पति महाराणा अजयसिंह ने -- जिसका समय विक्रम संवत् १३६५ के आसपास है— किसी मुन्ज नामक शत्रुको यद्यपि मुखमें पराभूत किया, परन्तु उसके भाग जाने से उसे संतेोष नहीं हुआ। अत: उसने अपने दोनों पुत्रोंको मुन्जका वध कर उसका शिर लाने के लिया कहा । और प्रगट किया, कि यदि वे उसका शिर नहीं ला सकेंगे तो वह उन्हें अपना asar औरस पुत्र नहीं मानेगा। परन्तु वे दोनों भाई भीरु थे और मुन्नका शिर लाने में असमर्थ रहे । परन्तु उसके भतीजे हमीरने मुन्जका शिर अर्पण किया । इस पर राणा अजयसिंहने उन्हें बहुतही बुरा भला कहा । जिसकी ग्लानिसे एकने आत्मघात किया, और दूसरा देश परित्याग कर डुंगरपुर चला गया। डुंगरपुर जानेवाले राजकुमारकी तेरहवीं पेढीमें सज्जनसिंह हुआ। सज्जनसिंह नामक व्यक्तिने मेवाड़ छोड़ दक्षिणमें आ कर बीजापुरके मुसलमानोंकी सेवामें प्रवेश कर मधोल परगना, जिसके अन्तर्गत ८४ ग्राम थे - की जागीर प्राप्त की। हमारा संबंध शिवाजीके वंशगत इतिहाससे न . होनेके कारण हम परंपराकी सत्यता अथवा असत्यता विवेचनमें प्रवृत्त न होकर ऐतिहासिक 'घटनाका दिग्दर्शन कराते हैं । परंपरा के अनुसार सज्जनसिंहको चार पुत्र थे। जिनमें सयाजी सबमें छोटा था । उसका पुत्र भोन्साजी जिसके नामानुसार उसके वंशज भोंसले कहलाये । भोन्साजीको १० लड़के थे। जिनमें से बड़े पुत्रका नाम मालोजीराव था । उसका शाहाजी हुआ। शाहाजीने अहमदनगर और बीजापुर के मुसलमानोंका दहिना हाथ बन मुगलोंसे घोर युद्ध किया था । इसी शाहाजी के पुत्र महाराजा छत्रपति शिवाजी हुए। शिवाजीका जन्म विक्रम १६८३ में हुआ था। शिवाजी अपनी माता और गुरूकी देखरेखमें शस्त्र विद्याका अध्ययन कर १८ वर्षकी अति युवावस्था मेंही मरहठा नवयुवकोंको एकत्रित कर हिन्दु साम्राज्य के पुनरुद्वारार्थ प्रयत्नशील हुए थे। और मावलको अधिकृत कर विक्रम संवत् १७०२ में महाराजाकी उपाधि धारण कर महाराष्ट्र राज्यकी स्थापना किया। एवं २८ वर्ष पश्चात् विक्रम १७३० में बड़ी धूमसे रायगढ़ में राज्याभिषेक किया, और उसी वर्ष लाट देशमें आकर सूरतको लूटा था शिवाजीको सूरत लूटके समय वांसदावालोंसे अभूतपूर्व सहायता मिली थी। शिवाजीको संभाजी और राजाराम नामक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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