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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] ४४ करनेके लिये युद्ध क्षेत्रमें प्रवृत्त हुआ। दोंनोंकी सेनायें भिड़ गई। प्रथम जयसिंह विजयी हुआ, परन्तु अन्तमें उसे हारकर जंगलोंमें भागना पड़ा। कुछ दिनोंके बाद उसके पुत्र विजयसिंहने अपने बाहुबलसे लाट और उत्तर कोकणके मध्यवर्ती भूभागको अधिकृत कर मंगलपुरीमें विक्रम ११४९ के आसपास नवीन राज्यकी स्थापना की थी । विजयसिंहके वंशधरोंने कुछ दिनों तक सुख और शान्तिके साथ मंगलपुरी में राज्य किया । परन्तु उन्हें पाटनवालोंके द्वारा पराभूत होकर मंगलपुरी छोड़ वसन्तपुरमें आना पड़ा। वसन्तपुर आनेके पश्चात् उन्होंने पाटनवालोंसे अपनी राज्य लक्ष्मीका उद्धार किया । अनन्तर इस वंशकी एक शाखा पुनः मंगलपुरी नामक स्थान में स्थापित हुई । इस वंशके पांच शिलालेख तीन शासन पत्र और एक राज प्रशस्ति हमें प्राप्त है । इस वंशके आश्रित महात्मा शंकरानंद भारतीके शिष्य कृष्णानंद भारती स्वामीके तापी तटपर बनाए हुए शिव मन्दिरकी प्रशस्ति है। अतः इस वंशके इतिहासको ज्ञापन करनेवाले ६ शिलालेख और तीन शासन पत्र हैं । इन लेखोंकी तिथि विक्रम संवत् ११४९ से १४४४ पर्यन्त है । इन लेखों को इस ग्रंथके वासुदेव शीर्षकके अन्तर्गत उधृत किया गया है। इनके पर्यालोचन से इस वंशका वातापि कल्याणके चौलुक्य वंशके साथ वंशगत संबंध प्रकट होनेके साथही इनकी वंशावली निम्न प्रकार से उपलब्ध होती है । सिंह (३) वसंतदेव (४) रामदेव मूलदेव 1 (६) कर्णदेव I (१) विजय सिंह T (२) ध व ल देव कृष्णदेव लक्ष्मणदेव (५) वीरदेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat महादेव चाचिक भीमदेव (१) कृष्णदेव (२) उदयराज www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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