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________________ ४५ (७) सिद्धेश्वर वसन्तदेव 1 (१३) वीरदेव (८) विशाल 1 महादेव (९) धवल (१०) वासुदेव I (११) भीमदेव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat | (१२) वीरदेव कृष्णदेव [ प्राक्कथन (५) कृष्ण I (३) रुद्रदेव I (४) क्षेमराज कुम्भ कीर्तिराज इन लेखोंपर दृष्टिपात करने से प्रकट होता है कि पाटनवालोंके साथ इनका एकबार संघर्ष हुआ था । केवल संघर्षही नहीं वरन उन्होंने इनकी स्वतंत्रताका अपहरण किया था । जिसका उद्धार वीरदेवने किया, और मंगलपुरीके स्थानमें वसन्तपुरको अपनी राजधानी बनाया । वरदेव मूलदेव और कृष्णदेव नामक दो लड़के थे। कृष्णने मूलदेवको मार डाला । बादको वह मंगलपुरीमें जाकर रह गया, जहांपर उसके वंशजोंने पांच वंश श्रेणीपर्यंत राज्य किया था । वसन्तपुरमें मूलदेवके वंशज रहे। जहां सात पीढीपर्यंत उन्होंने अप्रतिबाधित रूपसे राज्य किया । अनन्तर किसी शत्रुने आक्रमण कर वसन्तपुरका नाश किया । वसन्तपुरका अन्तिम राजा भीमदेव अपने परिवारको लेकर वासुदेवपुरमें चला आया । वासुदेवपुर आनेके बाद उसने अपने बड़े लड़के वसन्तदेव के पुत्र वीरदेवको राज्यभार देकर अपनी इहलीलाको समाप्त किया । वसन्तपुरके नाश पश्चात् वासुदेवपुरका प्रथम राजा वीरदेव हुआ । वीरदेव तथा उसके वंशजोंने कब तक वासुदेवपुरमें राज्य किया इसका अभी तक कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। बहुत संभव है कि भावी अनुसंधान वासुदेवपुर- वंशके वंशधरोंका परिचय हमें दे । www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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