SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४२६ ] पदमें खास आप पर्युषणा करते हैं और ८।१०।१५।२०।३०।४०४५ दिनके उपवासोंकी तपस्याकी गिनतीमें अधिक मासके ३० दिनको बराबर गिनते हैं। तो अब पाठकवर्गको विचार करना चाहिये कि खास आप अधिक मासके दिनोंको तपश्चर्याकी गिनतीमें लेते हैं तथा अधिक मासमेंही पर्युषणा करते हैं तथापि उसीको नपुसक निःसत्व ठहराकर दूष्टिरागी भोले भाले जीवोंको श्रीजिनाज्ञासे भ्रष्ट करते हैं सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से कितने संसार वृद्धिका हेतु है सो तत्वात स्वयं विचार लेवेगे,____ और पर्युषणा विचारका छपाई खर्चा और टपाल खर्चा श्रीयशोधिजयनीकी पाठशालाके सम्बन्धसे उगा? सो तो यहांके दलीपसिंहजी जौहरीके पास काशी की पाठशालालासे उदयराज कोचरका पोष्टकाई माया है उसी से तथा और भी कितनेही कारणोंसे सिद्ध होता है उसका विशेष विस्तार अवसर होनेसे पुनरावत्ति में लिखने में आधेगा और पर्युषणा बिचारका लेख काशी में उसी पाठशालेसै प्रगट भी हुवा है तथापि सातवें महाशयजी अपनी निन्दाकेभयसे श्री यशोविजयजी की पाठशालाके नामसे पर्युषणा विचारके लेखको प्रगट न कराते उदयराज कोपरके नामसे प्रगट कराया और श्रीकाशी (वाणारसी) का नाम भी न लिखाते प्रत्यक्ष मिथ्या फलोधीका नाम लिखाके मायाशत्ति से फलोधीके नामसे प्रगट कराया तो फिर अनुमान २० जगह उत्सूत्र भाषणोंवाटा तपा १० जगह प्रत्यक्ष मिथ्यालेखवाला और सत्य बात का निषेध करके अपनी कल्पनाकी मिथ्या बातको स्थापने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy